सृजनकार का वन्दन कर ले।
प्रस्तुत है एक रचना…..
सृजनकार का वंदन कर ले..
ग्रहों ,उपग्रहों की सृष्टि रच के
अंतरिक्ष में कोई दिशा न बनाई
गूढ शिल्प का अध्ययन कर ले
सृजनकार का वंदन कर ले ।
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नटी प्रकृति में नवरंग बिखेर के
हरी वसुंधरा छत नील गगन दिया
लहरों से नवगीत सिमर ले
सृजनकार का वंदन कर ले ।
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ग्रंथो, काव्यों की सृजना कर के
ऋषि, मुनियों ने उपकार किया
उऋण हो रच गीत रुपहले
सृजनकार का वंदन कर ले ।
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जीव जन्तु ,प्राणी जल थल में
कल कल झरने ,उपवन महके
दुखद सुखद भावों को समझ ले
सृजनकार का वंदन कर ले ।
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मानवमन की संरचना कर के
अनुभूति.अभिव्यक्ति जगाई
अब जग तजने का उपक्रम कर ले
सृजनकार का वंदन कर ले । ।
वीणा विज उदित