धराशायी आत्मा
फ़ीकी पड़ी शालीनता की शान राजनीति में
लहूलुहान हुई नेता की आत्मा कूटनीति में
बुलंद हौंसलों से चले थे ढोने देश का भार
संकीर्ण संविधान के कानूनों ने दी करारी मार |
स्पष्ट बहुमत न ले जब एक दल न सँभाले गद्दी
प्रतिशत बढाने को एलायंस की मार सहे वही
कैसे चले- फिरे, खाए रोटी सलीब पे टँगा नेता
करप्शन हटाने आया, उँगलियों पे नाचता नेता |
विपक्ष में चेहरे से जिनके था नूर टपकता रहता
कुर्सी की गर्मी से झुलस गया, सत्ता में चेहरा
आत्मिक-बल, सत्यता भी मँहगाई से मुर्झाई
एलायंस ने दिन-रात की जमकर खिंचाई.. |
पड़ाव को मंज़िल समझने की स्वयं कर बैठे भूल
पंखुड़ियों पर रखे थे क़दम, चुभ गए पाँव में शूल
स्वयं से किया न प्यार, देश पर रखी पूरी आस्था
किससे करे पुकार आज नेता की धराशायी आत्मा..!!!!
वीना विज ‘उदित’