मीत का संग
रंगीली धूप गीत गुनगुना रही है
खिलखिलाती फ़िज़ा मुस्कुरा रही है
उनकी आमद से छाई है बहार
छिटकी धूप में नहाई है मल्हार..
मेहंदी की महक ने जादू डाला
लाली ने लाज पे डाका है डाला
नील गगन का मुस्काता चंदा
शोखियां बिखेरता माथे पे सजा…
मीत के आते खनक उठे कंगन
कसक उठे हैं अंगिया के बंधन
पाजेब के घुंघरू में आई थिरकन
उद्वेलित हुई दिल की धड़कन…
ज़मीं का चप्पा-चप्पा ठहर रहा है
बाग़ भी रफ्ता-रफ्ता महक रहा है
फूलों में खिलने की उमंग जगी है
रंग ऑ सुगंध में छाने की ठनी है..
रंगों की बारिश से रंगीला है दामन
बिछुए के दर्पण में साजन के दर्शन
जग उठे सोए रुपहले सपनों के कण
खुशियों के मेघ बरसते मीत के संग ……..|
वीणा विज ‘उदित’
January 17th, 2008 at 1:07 pm
क्या बात है,रोम रोम खिल उथ ये पध कर्ति अति सुन्दर्,भवनो के शुर्गर से सज,बेह्तरिन्.
January 17th, 2008 at 1:11 pm
क्या बात है वाह्,रोम रोम खिल रहा कविता से,भवना के गेहनो से सजि,बेहतरिन्.