लघु-कथा सुखद अनुभव
शाँपिंग करते हुए रेवा के हाथ एक छोटे से कश्मीरी कोट पर जाकर रुक गए |बिना कुछ कहे उसने वो खरीद लिया |उसके सुनहरे ख़्वाबों में एक नन्ही सी तस्वीर उभर आई थी |अपनी सोच पर उसे स्वयं से ही लाज आ रही थी |अभी तो वो रजत के साथ हनीमून पर कश्मीर घूमने आई थी |उसने कोट को अपने कपड़ों के नीचे छिपा कर रख लिया |उसने अपनी इस नादानी को रजत से भी छिपा लिया |दिन बीते, वर्ष भी बीतने लगे-लेकिन रेवा की कोख हरी नहीं हुई |वो कभी-कभी अल्मारी खोलकर उस कोट को छाती से लगाकर मायूस हो रोने लग जाती |रजत भी सब कुछकर के हार चुका था |आज कमली बाई काम पर नहीं आई |अगले दिन रेवा के पूछने पर उसने बताया कि उसक नन्हा सा बेटा कल से बुखार में तप रहा था, आज भी पड़ोसन के पास छोड़कर सिर्फ बताने आई है |रेवा ने झट कहा कि वो उसे अभी यहीं ले आए, वह उसे देख लेगी |सुनकर कमली बाई हर्ष से फूली नहीं समाई |वह जाकर बच्चे को ले आई |रेवा ने स्नेहविह्वल हो उसे गोद में ले लिया |उसे लगा उसके भीतर ममता की लहरें तरंगित हो उठीं हैं |इतनी ठन्ड़ में उस बच्चे के बदन पर केवल एक पुरानी सी कमीज देखकर रेवा झटपट भीतर अल्मारी से वह छोटा सा कश्मीरी कोट निकाल लाई और उस नन्हे बच्चे को पहना दिया |उसे उस समय वह बच्चा केवल एक नन्हा बालक लग रहा था;जिसे ठंड लग रही थी, न कि अपना या पराया |यह देख कमलीबाई की आँख की कोरें खुशी से भीग उठीं |उसने रेवा को आसीस दी कि दीदी “दूधो नहाओ, और पूतों फलो” |रेवा के भीतर एक सन्तोष व आत्म-शान्ति के भाव समा गए |अब कमली बाई कभी-कभी बच्चे को बेझिझक साथ ले आती |खुशी से काम निपटाकर रेवा के पास बैठी भी रहती |समय की रफ्तार चल रही थी, कि एक दिन सुबह – सुबह रेवा उल्टियां करने लगी |यह देख|रजत उसे ड़ाक्टर के पास ले जाने लगा, तो कमली बाई आ गई |बोली,’ मैं घर का ध्यान रखती हूं ,आप बेफिक्र होकर जाएं |” डा. से वापिस घर आते -आते खुशियों का दामन भरे हुए रेवा और रजत ने मिठाई का डिब्बा लिया | और घर में घुसते ही रेवा ने डिब्बा खोलकर सबसे पहले कमली बाई का मुँह मीठा कराया |…………..रेवा माँ बनने वाली थी!!!
वीना विज ‘उदित’