माप दण्ड(लघु कथा)
आपके पापा घर में हैं ?
जी, नहीं | आप बैठिए |वो दस मिनिट में पहुँचते होंगे |छोटी को स्कूल लेने गए हैं |
ए.सी कार से बाहर आ, भीतर चलते पंखे की गर्म हवा में पसीने से नहाते उस सम्भ्रान्त दिखते मियाँ-बीवी ने पूछा | पुनः बोले, क्या
वो स्क़ूटर पर गए हैं?
जी नहीं , पैदल गए हैं |
इतनी धूप में पैदल ?
तब तो हम चलते हैं |शाम को फिर आ जाएंगे | काम था उनसे |(इतना कहकर वह दम्पति भागते हुए से जाकर दरवाज़ा खोल अपनी ए.सी,कार में जाकर बैठ गए | अपनी पीठ टिकाकर वे ऍसे बाठे मानो चैन मिला हो |तभी देखते हैं दूर से उसके पापा बेटी की उँगली पकड़े कड़कती धूप में बिन छाते के चले आ रहे हैं | )उनके कार के करीब पहुँचते ही कार की खिड़की का शीशा नीचे कर उन्होंने उसके पापा से बात की , फिर झट शीशा ऊपर चढा, वे चले गए |
वह गेट पर खड़ी थी ,अपनी गर्मी के माप-दंड को तौलती हाथ में ट्रे लिए जिसमें दो ताज़े पानी के गिलास थे |
वीणा विज ‘उदित’