हिन्दी पर कुछ कविताऍ —
икона за подаръкहिन्दी
निश्छल आत्मीयता आँचल में भर
पल-पल प्रतिपल मुझमें समायी
मेरी मातृभूमि हिन्दी की तरंगताल
संवेदनाओं को अनुभूतियों में उकेरती |
मौलिकता,सहजता,सरलता का शिल्प
वैचारिक प्रतिबद्धताओं को देती विचार
राष्ट्र्भाषा के उच्च पद पर आसीन हो
समृद्ध बन अकण्ठ जीवन को देती विस्तार|
मातृभूमि, मातृभाषा को नमन शत वार
देस हो परदेस सदा करें इसका प्रचारसर्व
हर मन की परिधि में लिपटी हिन्दी
निर्जरा रहे इसकी आभा का प्रकाश |
गुलामी के दिन लदे, स्वतंत्र हुई हिन्दी
मान बढाएं मातृभाषा का तज अंग्रेजी
गौरवान्वित करें भारत का भारतीयपन
जन-जन के ह्दयपटल पर लहराए ये परचम!!!!!!!
वीणा विज “उदित”
मातृभाषा हिन्दी
हिन्दुस्तानी वही जो करे हिन्दी का मान
सोचे हिन्दी,खोले हिन्दी मन का द्वार |
अनुभव प्रतिबिम्बित होते हिन्दी शब्दों मे
वास्तविकता पाती धरातल हिन्दी कथनों में |
जटिलता पाती समाधान सरल वाक्यों में
विडम्बनाएं होती अभिव्यक्त इसी में |
क्रन्दन करता नन्दन मातृभाषा अपनी में
सर्वव्यापक का स्तुतिगान बसा हिन्दी में |
दैविक शक्तियाँ बरसाती मेघ-मल्हार
विजयी भव! के आशीर्वाद बरसते हिन्दी में |
सीखें चीन, जापान,फ्राँस से मातृभाषा का प्यार
गौण प्रादेशिकता से सर्वोपरि ये पाए सत्कार |
मातृभाषा में चिन्तन का सार्वभौमिक अधिकार
जिव्हा पर हिन्दी विराजे अंग्रेजी का हो बहिष्कार|
गगनदुँदुभी बज उठी , नाद हुआ चहुँ ओर
उपलब्ध कराए जीवन- विवेक भाषा की डोर ||||||
हिन्दी का स्वरूप
सर्वभाषाओं में सरल ग्राह्यकारी
हिन्दी भाषी भरता रंगों की पिचकारी |
भाषा का रंग जिस-जिस पर पड़े
बतियाते हिन्दी में ,रंग जो चोखा चढे |
हिन्दी की जड़ से निकली शाखाएं
हर दस कोस पर बदलतीं धारणाएं |
तोड़-मरोड़ हिन्दी का बदलें स्वरूप
गाँव-गाँव में विचर बनती अनूप |
मातृभाषा हिन्दी की ढेरों बेटियाँ
बृज भाषा , मैथली ,कई खड़ी बोलियाँ |
हिन्द की माटी में जन्मी वीरॉं की कथा
हिन्दी से आँगन में बिखरी शुभ्र विभा |
हिम के उत्तुंग शिखर पर विराजी हिन्दी
साहित्यकारों ने कथाकाव्य से सजाई हिन्दी|
अन्तर्राष्ट्रीय शब्दकोष में सम्मानित हिन्दी
जय हे! जय हे! के नारों से गूँजी पृथ्वी ||
वीणा विज ‘उदित’
हिन्द की आत्मा हिन्दी
गगनचुम्बी पर्वतों की ऊँचाइयों पर पनपी
सतपुड़ा, विंध्यांचल की गोद में मुस्काई |
शिवालिक ने माथे पर सजाई बिंदिया
अरावली ने बाँहों में चूड़ियाँ खनकाईं |
नीलगिरी ने पहनाई पाँवों में पायलिया
ऑढाई सर पर धवल हिमालय ने चूनरिया |
अमित सद्भावनाओं से सजी हिन्दी देहावली
अनूप रूपों के सुन्दर बिम्ब सजाती हिन्दी |
हिन्द में बहती नदियाँ देती जाती पैग़ाम
मन में ठान नदिया में लो हिन्दी का स्नान|
शस्य-श्यामला धरणी की पहचान है हिन्दी
बरखा की बूँदों की टप-टप में गान है हिन
पूरब में कलरव करते पंछी भरते उड़ान यही
फ़ौज के जवानों के कमाण्ड में सजी हिन्दी |
उष्ण रेत से झरती, हिम की ठण्डक में हिन्दी
धरणी से उगती हिन्दी, मेघों से बरसती हिन्दी ||
वीणा विज ‘उदित’