पुनर्जीवन(First Part)
दिन भर फुर्सत में बैठे रहने से विशा का मन नहीं लगता था |नौकर-चाकर ही सब काम कर दिया करते थे |उसने पेंट करके ग्रीटिंग-कार्ड़ बनाने की सोची |विशा का हाथ ड़्राईंग-पेन्टिंग में बहुत माहिर था |उसने बहुत ही प्यारे-प्यारे कार्ड़स बनाए |इससे उसका समय रचनात्मक-कार्यो में बीतने लगा, साथ ही घर में बड़े-बूढ़े,व बच्चे सभी उसकी तारीफ़ के पुल बाँधने लगे |उनका संयुक्त परिवार था, घर में बहुत रौनक थी |एक शाम रोहण ने घर आते ही उसे घूमने चलने को कहा |विशा को मानो मन की मुराद मिल गई |उनका हवेलीनुमा बंगला वैसे ही शहर की भीड़-भाड़ से दूर था |फिर भी दोनों सुनसान रास्तों पर टहलते काफी आगे दूर निकल आए थे |विशा ने महसूस किया कि रोहण किसी ऊहापोह में फँसा हुआ है, वो कुछ कहना चाहता है |परन्तु कुछ कह नहीं पा रहा है |या फिर शब्दों का चयन नहीं कर पा रहा है |
इधर विशा भी स्वच्छन्द पक्षी की भांति चहकना चाह कर भी ,उसका रवैया देखते हुए शांत बनी रही | दोनो ही औपचारिक बातें करते हुए ,सैर करके वापिस आ गए | रोहण उससे कटा-कटा सा रहता था | आज अचानक रोहण के सैर के निमंत्रंण से विशा स्तब्ध थी |उसके मन में कहीं कुछ खटक भी रहा था | वैसे उनका आपसी संबंध औपचारिक बातों तक ही सीमित था |आज का व्यवहार …खैर, विशा प्रसन्न थी |आशा के विपरीत ,उसके बाद की हर शाम जीवन में सहजता लाती चली गई |विशा से कटा- कटा व गुमसुम रहनेवाला रोहण अब उससे बातें करने लग गया था |एक शाम सैर करते हुए विशा थक कर एक चट्टाननुमा पत्थर पर चढकर सुस्ताने लगी |उसे थका देखकर रोहण आगे बढकर उसे बाहों में लेते- लेते न जाने क्यूं पीछे हट गया | लगा, जैसे किसी ने उसके हाथों को रोक दिया हो | विशा, जो पति की बढती बाहों को देखकर हल्के से कम्पित हो उठी थी, उसकी सोई हसरतें करवट लेने ही वाली थीं कि दम भरने से पहले ही वे हसरतें दम तोड़ गईं | रोहण के व्यवहार से वो क्षुब्ध हो उठी थी |
उससे अगली शाम को रोहण काम से थका – माँदा घर लौटा, तो आते ही लाँन में नीचे बैठी मैग़ज़ीन पढती विशा की गोद में सिर रखकर वहीं घास पर ही लेट गया | विशा के आँचल में मानो ढेरों फूल खिल उठे | उसके अरमानों ने पुनः अँगड़ाइयाँ ले लीं | रोहण की प्यार भरी नज़र से उसे अँधेरों में उजालों के नन्हे क़दम अपनी ओर बढते नज़र आने लगे | रोहण उसे भी भीतर आने का इशारा करके स्वयं भीतर चला गया | रोहण की इस अदा से विशा का अन्तर्मन खिल उठा | उसे लगा आज आख़िरकार वो घड़ी आ ही गई, जिसका उसे पल-पल इंतज़ार रहा |वह भी उसके पीछे बिना विलम्ब किए भागी |रोहण ने उसे अपने पास पलंग पर बैठाकर उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया |हाथ को सहलाता हुआ वह बोला ,” बहुत दिनों से तुम्हे एक बात बताना चाह रहा था |मेरे जीवन में तुम्हारे आने से पूर्व कोई और भी आ चुकी थी ” |
नियति की कठोरता के समक्ष विशा सहज नहीं हो पाई | भीतर आते ही उस पर ग़ाज़ गिरेगी—वह कहाँ जानती थी? वह हक़लाते हुए बोली,”कौन है वो?”और वहीं ढह गई |रोहण ने उसका हाथ जोर से पकड़ लिया मानो स्वयं को संबल दे रहा हो | उसने उसे सँभाला और उसे होश में लाने का यत्न करने लगा | थोड़ी देर बाद सजग होते ही उसने रोहण का हाथ जोर से झटक दिया |वह चीखी, ” तो फिर यह …सब ! ..क्यों?”आखीर क्यूं???वह फटी आँखों से उसे तक रही थी | उसकी मचलती हसरतों का उबाल ,एकदम बर्फ़ानी हवा में बदल गया था | उसने स्थिर होकर पूछ ही लिया, “कहाँ है वो?” प्रत्युत्तर
में जवाब था कि यहीं पर है, मिलाने ले चलेगा किसी दिन |