चुभन (first -part)
रजत का रवैया उखड़ा- उखड़ा सा था |शगुना अपने- आप में सिमटी, चेहरे पर जबरदस्ती मुस्कान बिखेरे , भीतर से तार-तार होती जा रही थी |रजत से कुछ पूछने का साहस वो जुटा नहीं पा रही थी व घर के बाकि लोगों से तो अभी पहचान ही कहाँ थी? छुप- छुपकर वो रो लेती थी व भीगी आँखों में हँसी भरकर सबको खुश दिखाई देती |
आज पाँच दिन ही तो बीते हैं उसे डोली से उतरे हुए |दूसरी सुबह ही अपनी सखियों की शरारत भरी बातों का उसने क्या मुस्तैदी से जवाब दिया था | हालाँकि, उस रात सुहाग की फूलों की सेज उसे सूली के काँटों की तरह चुभती रही थी | रजत रात भर कमरे में नहीं आया था | सुबह जब पौ फटने को हुई, तो उसकी भाभी ने आकर बताया कि रजत रात भर छत पर उल्टियाँ करता रहा | शायद दोस्तों के साथ रात को कुछ उल्टा – सीधा खाया पीया था , जो हज़म नहीं कर सका | शगुना, जो उनींदी आँखें लिए फूलों की सेज पर सिमटी बैठी थी और हर आहट पर सँभलकर कान द्वार पर टिका देती थी–जो कई बार घबराकर आँखों में आते आँसुओं को रोके हुए थी, ढेरों सवाल जिसके ज़हन में आ-जा रहे थे, कि उसे आँखों से ओझल न होने देने वाला रजत ….आज ! मिलन की रात ! प्रथम रात को …उसके पास नहीं आया था | वह कितनी अधीर थी , अपने प्रीतम की बाहों में सिमट जाने के लिए | दोनों ओर बराबर की तड़प थी इस पल के लिए | फिर यह क्या रहा है????…लेकिन भाभी की बातों को सुनते ही शगुना के लड़खड़ाते विचारों को एक आयाम मिल गया | रजत से मिले बिना ही उसके सारे गिले धुल गए थे | अब वो रजत से मिलने को बेकरार हो उठी थी | भाभी के जाते ही , चिड़ियों की चहक से भोर हुई | और साथ ही कमरे में रजत ने पदार्पण किया | गुम-सुम, बुझा हुआ सा चेहरा! शगुना पर मानो घड़ों पानी पड़ गया हो | यह…यह क्या हो गया है उसके रजत को ? “माफ़ करना शगुना!” ,कहकर वो सोफे पर पसर गया | अपने अरमानों को ताक पर रखकर शगुना स्वयं ही उठकर उसके पास गई |लेकिन, कोई रिसपौसं न मिलने पर ,फफक कर रो उठी |वह गिला करे भी तो किससे???
शगुना की ज़िद पर ही तो उसके डैडी ने यह रिश्ता मंजूर किया था |……more
May 2nd, 2009 at 11:04 pm
कहानी बहुत अच्छी थी …चुभन को बयां करती हुई …..बहुत अच्छा लिखा है आपने
मेरी कलम – मेरी अभिव्यक्ति