नदी की धार
दीया चौधरी का दूसरा पीरीयड फ्री था|स्टाँफ- रूम से वो पांच- दस मिनट पहले ही निकल कर पांचवी ‘ए’ कक्ष के बरामदे के खम्बे से टिक कर खड़ी हो गई व यूं ही नीचे झांकने लगी| तभी भीतर पढ़ाती श्रेष्ठा गिल की आवाज उसके कानों से आ टकराई |’कृतघन – जो उपकार न समझे|’ दीया चौधरी का माथा ठनका|हिन्दी में एम. ए यह टीचर क्या पढा रही है? ‘कृतघ्न’ -शब्द का इतना निरादर—! भई माना कि यह अंग्रेजी मीडीयम स्कूल है| पर, पर हिन्दी तो हिन्दी उच्चारणमें पढाई जानी चाहिए न! शायद यह पंजाबी उच्चारण था|दीया चौधरी यू.पी की थी, इसलिए पंजाबी ठीक से नहीं जानती थी|खैर, तभी टन्-टन टन घंटी बज उठी|दीया की विचारधारा टूटी, सामने श्रेष्ठा गिल मुस्कुराते हुए बाहर आ रही थी| दीया ने उसकी मुस्कुराहट का जवाब ठंड़ी मुस्कुराहट से दिया व कक्षा के भीतर अपना विषय पढाने चली गई|….आगे…………….नदी की धार Nadi Ki Dhaar