बहक गया हूँ मैं..

जिन्हें अपनाने का दम्भ भरते थे
उनसे डरकर लौट आया हूँ मैं..
मीलों दूर हैं अब कल के निशां
उन्हें पीछ छोड़ आया हूँ मैं..
वफ़ा पर बेवफ़ाई की तोहमत लगे
उससे दामन झटक आया हूँ मैं..
‘कल’ जो इक अल्फ़ाज़ बन चुका है
ता उम्र उससे लड़ आया हूँ मै..
जीने को आज है मेरे पास
फिर भी इससे भाग रहा हूँ मैं..
फ़ुर्सत के पंख हवाऑं से पूछते
लगता, बहक गया हूँ मैं..!

वीना विज ‘उदित’

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