रितु बसंत रंगीली आई
देख शिशिर का अन्त कलियाँ मुस्काईं
भ्रमर गुंजन करे मदमस्त मन हर्षाया
तरुणाई ने ली अँगड़ाई जागी है भोर
रितु बसंत रंगीली आई, रंग फैलाया ।
गेहूँ की बालियाँ भी लगीं गदराने
हवा की ताल पे ता-थइया नचाया
चुनर धानी ओढ़ इठलाती स्वयं पर
बादलों की टोली देख मन भरमाया ।
कोयल कूकी विहँस उठे भृंग बसंत में
आम ने बौर झर-झर आँगन सजाया
सिली-सिली धूप छनकती पेड़ों से
प्रफुल्लित मृदुल मन लेता घाम छाया ।
चित्रित करे कैनवस पर रंग भरी तूलिका
मलय सरसों फूलों पर पीला पहर लाया
ज्योत्सना बरसा सुधा रस है छिड़काया
रितु बसंत आई, भँवरों ने शोर मचाया।।
वीणा विज’उदित’