मैंने उसको छुपा के…
बेनाम सी गहरी उदासी जब घिरी
दिल के क़रीब इक बर्क़ सी लहराई
जहाँ हसीन लम्हे थे इस ज़िदगी में
दर्द़ो-ग़म का भी अपना मुक़ाम था
*
मिले-जुले वक़्त से तारी थी ज़िंदगी
लम्हा हसीन था इक,मैंने उसे छुपा के
सबकी नज़रों से बचा के,इक गोशे में
बरसों से थपकियां दे सुलाए रखा है
*
मचली हैं हसरतें उससे दो-चार होने
उसका दीदार कर उसमें जी भर जीने
बेवजह उदासी का सबब पूछ कर
उसे यादगार लम्हा बना जी लेने को
*
बेगाना बन के रह गया हूं अपनों में
गुज़िश्त बन गया है एहसासे-अज़ीज़
वक़्त मेरा था लम्हे मैंने जीए थे बेशक़
पर उस छुपे लम्हे के सदके तसल्ली है
*
रफ़्ता-रफ़्ता गुज़र जाएगी उम्र बाकि भी
फ़क़्र है सही किया,मैंने उसको छुपा के।।
अर्थ:-
गुज़िश्त- बीता हुआ कल,
एहसासे-अज़ीज़-अपनेपन का एहसास
वीणा विज ‘उदित’