प्रखर रश्मिरथी
झुरमुट मेघों का बढ़ा त्वरित
असमंजस में तिमिर कर चला ।
आँधियों पर लिपट मौसम
झँझावत समवेत समेट चला ।
मुस्काती गेहूँ की सोन बालियाँ
गर्वित तनी, भिगो मेघ चला ।
बूँदें श्रम की झरतीं आशान्वित,
सारे भ्रम खंडित कर चला।
हवा की असंख्य-कराहटों का रुदन
प्रत्याशा में हृदय द्रवित कर चला।
स्वप्नों के सारे तार छितरा गए
करुणामय दिल रंजना को पिघल चला।
प्रखर रश्मिरथी नेपथ्य से प्रगट
सीली धरणी में पुन:ऊष्मा भर चला ।।
वीणा विज’उदित’