शेर
इन्तहाई परेशां हूँ ज़िस्म का दामन बचाऊँ कैसे
बढ़ता चला आ रहा है नंगी परछाईयों का कारवाँ ||
वीणा विज ‘उदित’
इन्तहाई परेशां हूँ ज़िस्म का दामन बचाऊँ कैसे
बढ़ता चला आ रहा है नंगी परछाईयों का कारवाँ ||
वीणा विज ‘उदित’