सूरज का टुकड़ा
Tuesday, September 15th, 2015मेरे बदन की दरो-दीवारों को छूता इक सूरज का टुकड़ा तिरस्कृत कर अन्धकार की काया आगे सरक-सरक जाता ठहरता, कभी बतियाता तो उसकी माया जान पाता बादलों से ऊँची मीनारों पे रहने वाला धरा के कण-कण को टटोले तो जाने उसके आलिंगन की प्यासी स्याह रात पाश में बद्ध गंवाती अपना आपा वक्त की परतों […]