इसलिए आओ हृदय में ।
Monday, February 16th, 2015लोभ, मोह, माया से लालित क्षुद्र सीमाएं वक्र रेखा में होती उद्भासित निरन्तर शिथिल हो रही अंगयष्टि है बेचैन हे वरद हस्त कौशल -शिल्पी! शरण धरो । हृदय के अतल गह्वर का आत्मज्ञान विलीन हो अवरोधित हुआ निराधार कौसुम्भी धाराएं जो करतीं चलायमान , अवरोध हटा उनका मार्ग सरल करो । * अनुतापवश कांपते अधरों […]