ग़ज़ल-मौत भी शायराना चाहता हूँ !
Sunday, May 8th, 2011फ़िदा हुस्नो-जमाल पर तिरे ऐ मेहज़बीं दीदारे-हुस्न से सकूने-दिल चाहता हूँ.. भटकता कूए-यार में फिरूँ इश्को-सितम उठाना चाहता हूँ.. रफ्ता-रफ्ता निकल,सहरे-आगोशा को रस्मे-वफ़ा आजमाना चाहता हूँ.. दीवानग़ी में डूबकर मुर्शिद मेरे दस्तूरे-वफ़ा निभाना चाहता हूँ.. तेरी रुसवाई की ख़लिश है सीने में ख़लिश मरकर मिटाना चाहता हूँ.. सामने बैठो’वीणा’सरे-बज़्म तकते रहो क्योंकि,मौत भी मैं शायराना […]