माँ
Saturday, April 23rd, 2011हे क्षीर-स्त्रोत्री ! तुम ही गुरु सखा मेरी अन्तर्प्रज्ञा हो माँ ! जब नन्हे से दो होंठ जुड़े फूटा अस्फुट प्रथम स्वर मां ! बाल-कलोल नटखट बाल-हठ पर लाड़ से लिपटाया तुमने माँ ! चेहरा पढ मन जाना कामधेनु सी इच्छाएं की पूर्ण तुमने माँ ! तन के फटने मन के टूटने पर तुरपाई कर […]