इक आलिंगन !
Tuesday, January 11th, 2011चाँद की चाँदनी से छिपकर श्यामल मेघों की ओट में आओ, मिलन की चाह में चुपके से , ले लें इक आलिंगन ! सूर्यकिरणें आती छनछन गरमातीं पत्तोँ के तन आओ, सुबह की ओस बनकर पत्तों पर लुढ्क,ले लें इक आलिंगन ! साँय-साँय हवा के शोर से लरजतीं पेड़ों की डालियाँ आओ, पत्ते बन डाली […]