Archive for September 22nd, 2010

रुसवाई

Wednesday, September 22nd, 2010

हाले दिल बयां करूं भी तो किससे माज़ी अपना ही कनारा कर गया.. रस्मे- वफ़ा निभाते रहे उफ़ न किए बेरुखी से दामन चाक-चाक कर गया.. ज़मीं से फ़लक तक सजदा किए नाकामियों का मंज़र अता कर गया.. अश्कों का समंदर लहू संग बहे ऐसे ही जीने का इशारा कर गया.. इश्क में ड़ूबते तो […]

हाज़िर है इक ‘शेर’

Wednesday, September 22nd, 2010

दर्द औ ग़म की दोस्ती में ज़ख्मों की आदत जिग़र को हो गई…!