निर्झर
Friday, July 31st, 2009नूतन देहयष्टि का लिया प्रथम आलिंगन अनछुए बदन में मचली सिहरन ! तन-बदन के सहस्त्र छोर तक सका न जिन्हें कोई और चप्पा-चप्पा, हर इक पोर तुम्हारे स्पर्श से हुए विभोर ! सूर्य-किरण जहाँ न जा पाए उन अँधियारों में जा समाए हो तुमसे आत्मसात मचले अरमान ! बाँहों में भर पाऊँ तुम जाते निकल […]