Archive for May, 2009

पुनर्जीवन (second Part)

Thursday, May 21st, 2009

विशा फटी आँखों से रोहण को तक रही थी |किसी तरह अपने को सँभाल वह उसका हाथ झटक कर वहाँ से हट गई |आँखों में अटके सागर को उसने बेरोक बह जाने दिया |भरे-पूरे घर में तो उसे सिसकी लेने पर भी रोक थी ,अभी तक जो बात पर्दे में थी वह खुल सकती थी […]

पुनर्जीवन(First Part)

Thursday, May 21st, 2009

दिन भर फुर्सत में बैठे रहने से विशा का मन नहीं लगता था |नौकर-चाकर ही सब काम कर दिया करते थे |उसने पेंट करके ग्रीटिंग-कार्ड़ बनाने की सोची |विशा का हाथ ड़्राईंग-पेन्टिंग में बहुत माहिर था |उसने बहुत ही प्यारे-प्यारे कार्ड़स बनाए |इससे उसका समय रचनात्मक-कार्यो में बीतने लगा, साथ ही घर में बड़े-बूढ़े,व बच्चे […]

इन्द्रधनुषी चाह

Thursday, May 21st, 2009

विजय की कार जैसे ही कंवल की दुकान के सामने जाकर रुकी |कंवल ग्राहक को फ़टाफट सामान पकड़ाकर बाहर की ओर भागा |उसने विजय को कसकर सीने से लगा लिया |दोनों में बेहद प्यार था |रामनाथ को दुकान देखने को कहकर, दोनो दोस्त दुकान के ऊपर के घर में चले गए | सामने ही ऊँचे […]

चुभन(तीसरा भाग)

Thursday, May 7th, 2009

रजत हर वक्त शगुना से बात करने का यत्न करता, लेकिन वह कन्नी काटकर निकल जाती |आखिरकार वे दोनो जब कमरे में अकेले हुए तो रजत ने उसे अपनी ओर खींचकर पूछा,” शगु! कैसी हो ? पूछोगी नहीं कि मैं कैसा हूँ” शगुना ने झट उसकी बाहों को परे हटाते हुए कहा ,”ठीक हूँ!” चाहती […]

चुभन (दूसरा भाग)

Wednesday, May 6th, 2009

रजत की साधारण नौकरी उनके लिए कोई मायने नहीं रखती थी | वे अपनी बेटी से बेहद प्यार करते थे, तभी उसकी खुशी के लिए उन्हें झुकना पड़ा | दो प्यार करने वालों को मिलाकर अब वे हार्दिक प्रसन्नता व आत्मिक शान्ति का अनुभव कर रहे थे | वे अपनी लाडली बेटी को हर हाल […]

चुभन (first -part)

Saturday, May 2nd, 2009

रजत का रवैया उखड़ा- उखड़ा सा था |शगुना अपने- आप में सिमटी, चेहरे पर जबरदस्ती मुस्कान बिखेरे , भीतर से तार-तार होती जा रही थी |रजत से कुछ पूछने का साहस वो जुटा नहीं पा रही थी व घर के बाकि लोगों से तो अभी पहचान ही कहाँ थी? छुप- छुपकर वो रो लेती थी […]

फैसला-दर-फैसला

Friday, May 1st, 2009

 तलाक की चर्चा होने पर ईषिता का मन काँप सा उठा, उसके पति पर चरित्रहीन होने का आरोप शत-प्रतिशत सत्य था |इसी से उसका तलाक लेने का फैसला पक्का था |वकील आया, उससे कुछ- कुछ पूछा—फिर कुछ पढ़कर सुनाया |उसके हस्ताक्षर करवाए और चला गया | निश्चित दिन कुछ रिश्ते-नातेदारों को लेकर ईषिता के पिता […]