Archive for March 28th, 2009
Saturday, March 28th, 2009
मध्यप्रदेश के दक्षिण-पूर्व में आदिवासी इलाका सरगुजा है |घने जंगलों से आच्छादित पर्वत -श्रेणियाँ अपने भीतर कोयले की खानें समेटे हुए हैं |नीला के पिता के जिग़री दोस्त काशीनाथ वहीं एक खान में अच्छी पदवी पर कार्यरत थे |वह सपरिवार जब क्भी दिल्ली जाते, तो उनका पत्र आ जाता कि शहदोल गाड़ी रुकेगी |आप सब […]
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Saturday, March 28th, 2009
शमिता और यश अपने छोटे बेटे आर्यन का रिश्ता ढूंढने के लिए बहुत अधीर थे |आजकल इंटरनैट से बेहतर साधन भला और कौन सा है?पति-पत्नि दोनो कम्प्यूटर के सम्मुख बैठकर , जो रिश्ते ठीक लगते उनको चिट्ठियाँ भेजते, कहीं ई-मेल का पता मिल जाता तो उसी क्षण ई-मेल कर देते |बहुत बेसब्री से उत्तर का […]
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Saturday, March 28th, 2009
कार के एक्सीलेटर पर पाँव रखते ही मयंक भूल जाता था कि वो ज़मीन पर है | उसके ख्याल आसमानी रंग भरने लगते थे |वो रंगों में खो जाता था |यही सब तो चाहा था उसने |अपने पास एक बढ़िया कार हो, पाँव के नीचे आमेरिका की ज़मीन हो |हाई-वे पर स्पीडिंग मना थी, पर […]
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Saturday, March 28th, 2009
समाज की आंखों में धूल झोंकते हुए अपने अरमानों की तृप्ति करना।
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Saturday, March 28th, 2009
मिनी दुल्हन बनी फूलों की सेज पर बैठी घबराए जा रही थी |इन अमूल्य क्षणों में हर नई- नवेली दुल्हन जो कुछ सोचकर लाज से छुई- मुई हुई जाती है व हर आने वाले पल में उस सपनों के राजकुमार के कदमों की आहट की बाट जोहती है, जो आगे बढ़कर उसे अपनी बाहों में […]
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Saturday, March 28th, 2009
दिसम्बर की छुट्टियों में कनु होस्टल से घर आई थी |जी तो चाहता था कि लम्बी तानकर सोई रहे |होस्टल की घंटी से बँधी दिनचर्या से कुछ दिनों के लिए छुटकारा तो मिला |पर कहाँ, मम्मी है कि अपनी अपेक्षाएं संजोए बैठी थीं |कनु आएगी तो यह करूंगी, वह करूंगी |कनु के साथ फलां- फलां […]
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Saturday, March 28th, 2009
पल्लवी ने काँलेज से आकर मेज पर किताबें पटकीं तो उसकी नज़र घर की साफ- सुथरी सज्जा पर ठहर गई |उसे लगा अवश्य ही कोई विशेष बात है, जो घर को सजाया गया है |माँ को पुकारती वो रसोई की ओर चली गई |रसोई से आती महक से उसका शक़ यकीन में बदलने लगा |माँ […]
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Saturday, March 28th, 2009
वैधव्य के श्वेत परिधान में लिपटी कविता आज बरसों बाद एक यातना से उबरकर उस शान्ति का अनुभव कर रही थी, जिसे पाने के लिए वो दिन- रात छटपटाती रही थी |बीस—-वर्षों की लम्बी यात्रा!! जिसमें चलते- गिरते , उठते- बैठते उसके क़दम इस क़दर भारी हो चले थे कि उसके पार्थिव शरीर का बोझ […]
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Saturday, March 28th, 2009
धूप की हल्की तपिश ज़िस्म को सेंक देने लगी, तो नीता की आँख लग गई |प्रवेश की शादी के बाद बहू गिन्नी ने घर अच्छी तरह सँभाल लिया था |बड़ी बहू ने तो बेटा ही अमेरिका में रख लिया था, जो वहीं की थी |मझली काफी तेज़ थी |मँझले बेटे आशीष के कुछ दोस्त आस्ट्रेलिया […]
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Saturday, March 28th, 2009
मानव- मन की संवेदनाएं किसी विशेष देश या सरहदों से भिन्न नहीं हो जातीं |भारतीय परिवेश या अमेरिकन वातावरण भावों को बाँटता नहीं |किसी के भी व्यक्तित्व पर सुख- दुख सामान रूप से हावी होते हैं |मेरी यह कहानी एक अमेरिकी नारी की है |……..Lal Dress Sunahre Jute लाल ड्रेस सुनहरे जूते
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