Archive for November, 2007

लौ का इंतज़ार

Sunday, November 11th, 2007

बढते आते अँधेरे गलबय्यां डाल मेरे अस्तित्व को नकारते मुझ पर छाते चले गए | हमराही कहीं था टटोलने में दिशाभ्रम उसे भी छिटका गया | भयावह कालिमा और यह बाँझ आकाश समाधिस्थ लगता सप्तऋषियों का कारवाँ | अन्तस की लपटों की लौ बुझकर मृतप्रायः हो चीत्कार करने को आतुर खुले होठों में दंतशिलाबन ठिठक […]

टूटे लम्हे

Wednesday, November 7th, 2007

वक्त की शाख से टूट कर लम्हे गुम जाते हैं ! रिश्ते बेनाम होते हैं तो मर जाते हैं ! ठहरे हुए रिश्ते सड़कर बदबूदार हो जाते हैं ! दामन झटकाने से सड़ांध तो जाती नहीं, जिस्म के हर क़तरे के टपकते लहू से बू आती है ! अच्छा हो कि काटकर फेंक दो -उन […]

दीपों के पर्व में तुम खिलखिलाओ

Monday, November 5th, 2007

दीपों के पर्व में तुम खिलखिलाओ मन के अँधेरों में भी दीप जलाओ | * गहन अंधकार में सूझे न दिशाएं ये अमावस कहाँ से घिर आई रोशनी लाओ, नूतन राह सुझाओ मन के अँधेरों में भी दीप जलाओ| * राह भूले नभ में भटकते तारे घनघोर कालिमा में नहीं रोशनीपुंज चंद्रकिरणे सहेज कर लाओ […]

Halloween–कद्दूओं का त्यौहार

Friday, November 2nd, 2007

31st अक्टूबर आते- आते हर तरफ सिर्फ़ छोटे- बड़े कद्दू ही दिखाई देने लगते हैं, ख़ासकर अमेरिका, इंगलैंड व योरपीयन देशों में |आयरलैड् और स्कँटलैंड से जन्मी प्रथा १९वीं सदी में उनके साथ उत्तर अमेरिका आ गई |२०वीं सदी में पूरे पाश्चात्य जगत के त्यौहारों में रच बस गई कि अब उनकी अपनी धरोहर बन […]