स्वर्ण-हिरण

एअर-पोर्ट पर चैक-इन के लिए भीतर जाते समय ज्यूं ही अष्मित और वासु ने अपनी-अपनी माँ के चरण छुए , दोनो माताओं की आँखें नम हो उठीं |वासु के पापा ने भी गले लगा कर दोनों को आशीर्वाद दिया | विछोह! कठिन है , लेकिन बच्चों के भविष्य को सँवारने के लिए यह तो सहना ही पड़ना था | अष्मित और वासु दोनों ने एक-दूसरे का हाथ कस के पकड़ा हुआ था ,जिससे दोनों के भीतर एक जैसी ऊर्जा साथ-साथ बहे और इन भावनात्मक क्षणों में वे स्थिर बने रहें | दोनों पर ‘विदेश’ का भूत दिन-रात सवार रहता था |विदेश जा कर पढेंगे , कुछ बनेंगे और खूब पैसा कमाकर लाएंगे –यही इनके जीवन का लक्ष्य था |आजकल की जवान पीढी जल्दी से जल्दी ढेर पैसा कमाना चाहती है | फिर उसके लिए वे कुछ भी कर गुजरने का हौंसला रखती है | बारहवीं पास होते ही दोनो ने अपने-अपने घर में मोर्चा खोल दिया | वासु के पापा ने समझाया कि पहले कोई प्रोफैशनल डिग्री कर लो , फिर जाना | लेकिन यह विदेश का भूत जिनके बच्चों के सर चढता है उसका असर वही समझ सकते हैं |खैर , वे बोले , “होटल-मैनेजमेंट का तीन साल का कोर्स वे स्विट्ज़्ररलैंड जाकर कर सकते हैं | लेकिन , उसकी फीस हमें देनी पड़ेगी | चलो करते हैं जुगाड़|”
वासु के पापा शहर के नामी होटल में मैनेजर थे ,वासु उनकी इकलौती औलाद थी || जबकि, अष्मित की विधवा माँ व एक ब्याही बहन थी | उसके पापा के एक्सीडेंट के बाद कोठीनुमा घर बेच कर सुधा ने आधे पैसों से नई लोकैलिटी में घर ले लिया था |बचे हुए पैसों से घर चल रहा था |दो छोटे-छोटे प्लाँट भी थे ,जो उसने बेटे के लिए रखे थे |सुधा ने उनमें से ही एक प्लाँट बेचकर उसे पैसे दे दिए |
दोनो दोस्त पहली बार हवाई जहाज का रोमांचक सफर कर रहे थे |आँखों में ढेरों सुनहरे अदृश्य भविष्य के सपने संजोए ,नई उमंगें जगाए वे अपनी मंज़िल के पहले पड़ाव की ओर बढ़ चले थे | उनमें असीम उत्साह के साथ-साथ नए देश में , नई संस्कृति व नई बोली के कारण घबराहट भी थी |वहाँ एक-दूसरे का साथ दोनों में ऊर्जा भरता रहता था | आपस में मातृभाषा में बात करना, हिन्दी के गीत गुनगुनाना ,एक सा खाना व संग में पढाई करना | इससे उन्हें समय का पता ही नहीं चलता था, उदास होना तो दूर की बात थी | खाली वक्त में फिल्मों में देखी हुईं पेरिस की गलियों में घूमना उनको भाता था | ट्रेन में दो घंटे की दूरी पर जीनेवा था, वे वहाँ भी घूम आए थे |वो ढेरों फोटोस घर भेजते थे | घर वाले देख कर व पहचान वालों को दिखाकर खुश होते थे | एक वर्ष बीतने पर वे घर इंडिया आए |उनके व्यक्तित्व में निखार व आत्मविश्वास देखकर दोनो घरों में तसल्ली हो गई |
आशू अर्थात अष्मित लम्बा-ऊँचा रोमांटिक हीरो जैसा था |पिंकल से उसका रोमांस स्कूल से ही चल रहा था, पर किसी को कानो-कान खबर नहीं थी |उसके दूर जाने से वो बेहद अकेला महसूस कर रही थी | उसके हठ पर आशू ने अपनी ममी को सब बता दिया |सुधा यह जानकर पिंकल से मिली और उसे गर्व हुआ कि उसका बेटा ‘मोहब्बत’ का अर्थ जानता है |विरह की पीड़ा व मिलन का सुख अनुभव कर सकता है |प्यार की मिठास में डूबा है उसका बेटा | सुधा सुलझी हुई ,समझदार महिला थी |उसने गाँठ बाँध ली कि वक्त आने पर वह बेटे के साथ खड़ी होगी |स्वयं के लिए भी उसने भविष्य में कुछ मधुर पलों का सुख अभी से संजो लिया था |
देखते ही देखते दूसरा साल भी बीत गया | कोर्स काफी मँहगा था | आगे की पढाई के लिए दोनो परिवारों ने हाथ खड़े कर दिए | असल में , अन्य देशों में पढाई के साथ आप नौकरी कर सकते हैं | स्विट्ज़रलैंड में यदि आप वहाँ के सिटीजन नहीं हैं , तो वर्क-परमिट नहीं मिलता |वर्क-परमिट नहीं है , तो आप वहाँ नौकरी नहीं कर सकते हैं | सिटीज़न होने के लिए सब ने सलाह दी कि यहाँ की सिटिजन लड़की से विवाह कर लो |जीवन एक दोराहे पर आ कर खड़ा हो गया था | जब स्वर्ण हिरण के पीछे भागना है , तो समक्ष एक ही विकल्प था| दोनो लड़की ढूँढने में जुट गए | वे स्टोर्स पर जाकर कहते व ताड़ते रहते | एक स्टोर पर आशू को एक भारतीय सिंगल मदर ‘रेखा’ अपनी दो बेटियों चिंकी -मिंकी के साथ मिली | उसका अपने साऊथ-इंडियन पति से तलाक हो चुका था | वहाँ की सिटीजन होने के कारण वो इंडिया वापिस न जा कर , यहीं अपनी बेटियों को अच्छी तालीम दे रही थी |सरकार ने उसे रहने को घर दिया हुआ था | वो आशु से करीब १५ वर्ष बड़ी थी | यह तो सच में स्वर्ण हिरण पकडने गए राम भगवान वाला हाल था, जो सारी उम्र फिर मुसीबतों से ही जूझते रहे |आशू ने सोचा , ओखली में जब सर देना ही है , तो मूसल भी सहने पड़ेंगे | सो, उसने अपनी प्राँबलम रेखा के समक्ष रखी | रेखा ने कुछ सोचा और एक हजार फ्रैंक हर महीने लेने पर मान गई | उसकी शर्त्त थी कि वो उसके साथ न रहकर अपने घर में ही रहेगी | पत्नी के नाते उसकी सिटिज़नशिप के लिए अर्जी दाखिल करेगी ,और सिटीज़नशिप मिलने के बाद उसे तलाक दे देगी |
आशू ने माँ को फोन पर सारी स्थिती से अवगत कराया | वो तो सुनकर घबरा गई |पिंकल भी यह जान अन्जाने भय से ग्रसित हो उठी | उसके माँ-बाप भी बेटी के प्यार की खातिर चुप रह गए | सब को समझाने वाला आशू स्वयं भी अन्तस में चुभन महसूस कर रहा था | एक भय का कीड़ा उसकी आत्मा को दीमक की तरह लग ही गया था |इश्क में इंसान अपने आप से उठ कन्फैशन और समर्पण के लिए सत्य का दामन थाम लेता है , वही उसका बल होता है |तभी आशू पिंकल को सत्य से अवगत करा सका था | वासु के साथ भी अनहोनी घट गई |
वासु के पापा का फोन आया कि वो एकदम इंडिया आ जाए | लड़की ढूँढना छोड़कर वो इंडिया ऍसा गया कि फिर कभी नहीं लौटा |असल में , वासु के पापा के पुराने दोस्त सेठीजी अपनी बेटी ‘माना’ का रिश्ता वासु के लिए लाए थे | वासु ऊँचे कद का ,गठीले बदन का था , जबकि ‘माना’ दिखने में साधारण ,पर
पढी-लिखी और स्मार्ट थी |दोनो का विवाह सम्पन्न हो गया | वासु विवाह होते ही स्विटज़रलैंड का सिटीज़न बनते-बनते कैनेडा का सिटीज़न बन गया था और ‘माना’ वासु की डोली कैनेडा ले गई |वासु बेहद उत्साहित था | उसने फोन पर आशू को सारी घटना सुनाई | सब सुन कर आशू उसके भाग्य पर जल उठा |वासु को भाग्य ने सजी-सजाई थाली परोस दी थी | जबकि आशू को अपनी थाली में सूखी रोटी परोसने के लिए अनाज के दानों का भी जुगाड़ करना पड़ रहा था | आशू अपने नए फैंसले के साथ वहाँ अकेला रह गया था | उसने अपना ध्यान वासु से हटाकर रेखा पर केन्द्रित किया ,क्योंकि अब उसके हाथों में आशु की बाग़डोर थी |दोनो ने कोर्ट मैरिज कर ली |
अब आशू जाँब करने लग गया था| वो हर महीने रेखा को एक हजार फ्रैंक भेंट चढा आता था |जिस दिन वो आता , रेखा व उसकी दोनो बेटियाँ-जो ८-७ वर्ष की थीं ;आशू के साथ बाहर जाने को तैयार रहतीं थीं | कभी नया टी.वी , कभी बच्चों की ड्रेसेस ,कभी न्यू बाइक लेनी होती थी | कभी रेखा आँफिस में फोन करती कि जल्दी आ जाओ , चिंकी को बुखार है | डा. के जाना है | अष्मित की हालत त्रिशंकु सी हो गई थी |न वो पैसे बचा पा रहा था और न ही चैन से जी पा रहा था |रेखा को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बिना किसी जिम्मेवारी के मिली हुई थी |वो उसके पेपर्स जान-बूझ कर आगे नहीं बढा रही थी |आशू के पूछने पर वो कह देती कि प्रोसेस चल रहा है , देखो कितना समय लगता है | पर, वो तो उसे ब्लैक-मेल कर रही थी | आशू अपराध-बोध से ग्रसित रहने लग गया था | विदेश जाकर बहुत नौजवान उस जैसे या और भी कई अनचाहे व जघन्य अपराध करने को मजबूर हो जाते हैं | वह सोचता, ये भी क्या विडम्बना है ! कुछ पाने की तलाश में उसने अपने लिए भटकन पाल ली है | रामजी-भगवान होते हुए भी स्वर्ण-हिरण की तलाश में ऍसे भटके कि उनका जीवन ही भटक गया | फिर, वह तो आम इंसान है | जैसे, पैसे के पीछे भागने वाली एक अभिशप्त -आत्मा!!
साल बीत जाने पर आशू का मन वतन जाने को किया | उसे जाता देख कर ,रेखा ने भी साथ चलने की ज़िद की |बच्चों को अपनी एक सहेली के घर छोड़ने की उसने व्यवस्था कर ली ,और उसके साथ इंडिया आ गई | उम्र में काफी बड़ी होने के कारण किसी को शक नहीं हुआ | न चाहते हुए भी सुधा ने उसकी आव-भगत की और उसे आशू की मदद जल्द से जल्द करने की विनती की | उसे आशू के साथ देख पिंकल बेचैन हो गई थी | आशू ने उसे समझाया कि वो नाम-मात्र की पत्नी है | उनका आपस में शारीरिक-संबंध नहीं है, क्या उसे उस पर विश्वास नहीं है ? पिंकल ने जब आशू की नज़रों में केवल अपने लिए ही प्यार पाया तो , उसी विश्वास पर वो निश्चिंत हो गई |उधर सुधा ने रेखा को शाँपिंग करवाई, तो रेखा अपने भाग्य पर गर्वित हो उठी | उसने पति के बाद भी ऍसा मुर्गा फँसाया था जो उस पर सब कुछ लुटा रहा था | खैर, वह अपने माँ-बाप से मिलने बम्बई चली गई |कुछ दिनों बाद आशू भी चला गया |
अर्ज़ी आगे बढवाने के चक्कर में वक्त मुसलसल गुजरता जा रहा था |जिस तरह शेर के मुँह खून लग जाता है है, वो आदमखोर हो जाता है | उसी तरह बिन हिल-हुज्जत किए रेखा को एक हजार फ्रैंक मिल जाते थे |उसका क्या दिमाग चल गया था जो वह आशू की अर्ज़ी आगे बढवाती ? देर होने से आशू यही सोचता रहता था कि उससे ये कैसी भूल हो गई है ! क्या सिटीज़न बनना ज़रूरी था ? वो अपने देश वापिस क्यों न चला गया ? यहाँ का पैसा तो यहीं खर्च हो रहा है | इतने पैसे से कोई बिज़नेस या फिर कोई और काम करके वो अपनों में तो रहता !! वो कई बार रो पड़ता था, अपनी मज़बूरी पर | लेकिन उसकी चुप्पी का रोना सुनने वाला वहाँ कोई नहीं था |
पिंकल का विरह न चाहते हुए भी शक़ का दामन ओढे हुए था| वह अपने ईष्ट को मनाती , दुआएं करती ,व्रत रखती कि उसके आशू का अपने ऊपर से संयम कभी न छूटे | शायद यह उसकी दुआओ व प्रेम पर दृढ-विश्वास का असर था कि आशू रेखा के जाल में फँसते-फँसते रह जाता था |वह विरह के दर्द को लपेटे , दुनिया के समक्ष मुस्कुरा के जी रही थी |लेकिन आशू से उसका दर्द नहीं छिप पाता था |और दर्दीली फ़िज़ा उसे भी संग ही जकड़ लेती थी | इधर ,रेखा अभी भी यही कहती कि ‘फाइल प्रोसेस में है ‘|
एक बिन्दु पर आकर उसे पूर्ण विराम लगाने की , उस ‘कुछ को पाने’ –को नकारने की मानसिकता ने आशू को अब घेर लिया था | उसे लगा, उसने झूठी खुशी को पाने की तलाश में अपनी असली खुशियों की बलि चढा दी है | पिंकल का संदेह , आक्षेप अब यहीं पर समाप्त कर के वह इंडिया जा कर अपना सुखद संसार बसाएगा | उसने माँ और पिंकल को अपना फैंसला सुनाया |साथ ही शादी की तैयारी करने को कहा | आशू सब कुछ छोड़कर चुपचाप इंडिया आ गया | धूमधाम से दोनो का विवाह सम्पन्न हुआ | अचानक वासु को वहाँ पाकर आशू खिल उठा, लेकिन वासु चुप था , मानो कुछ छूट गया हो | बाद में उसने बताया कि उसका तलाक हो चुका है | ‘माना’ बहुत ही मार्डन है वो बच्चा नहीं चाहती थी | सो,
वह अपनी बेटी को ले कर इंडिया आ गया है | उसकी भी स्वर्ण-हिरण को पाने की चाह ने उसका जीवन बर्बाद कर दिया था | पिंकल को आग़ोश में भर कर आशू शुक्र मना रहा था कि वो वापिस आ गया था | नहीं तो उसे भी अपनी रामायण रचनी पड़ जानी थी |
वीणा विज ‘उदित’

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