रीती गठरी
वैधव्य के श्वेत परिधान में लिपटी कविता आज बरसों बाद एक यातना से उबरकर उस शान्ति का अनुभव कर रही थी, जिसे पाने के लिए वो दिन- रात छटपटाती रही थी |बीस—-वर्षों की लम्बी यात्रा!! जिसमें चलते- गिरते , उठते- बैठते उसके क़दम इस क़दर भारी हो चले थे कि उसके पार्थिव शरीर का बोझ भी उठा पाने में अपने को असमर्थ पा रहे थे |वह दहलीज पर बैठे उस अतीत के पन्ने पलट्ने लगी , जिसमें अपने सम्पूर्ण जीवन के सुनहरे स्वप्नों की आहुति दे चुकी थी…….रीती गठरी Reeti Gatthri