रक्ताभ झील
तुमने सुना है फ़िज़ा में दर्द
मैंने भी सुनी हैं सिसकियाँ
हम सब ने सुना है कुछ
हाँ, डल झील का रुदन !
लहू के कुछ क़तरे
झील में गिरे
लील लिया
झील का अम्नो-चैन
रक्ताभ हो गई
छाती नीली झील की ।
कमलनियाँ कुचली गईं
कँटीली नागफनियाँ
चुभ रहीं अब
हवाएँ भी प्रदूषित
घाटी में घोलतीं ज़हर ।
कराहटों का रोना लिए
दर्द़ में डूब गया
धरती का स्वर्ग
‘कश्मीर’ !
तप्त हृदय लिए
बर्फीले पर्वत जल रहे
जल-ताण्डव करने
को, मेघों संग
रच षडयंत्र
घाटी में लाए
‘सैलाब’ !
मासूमियत हुई हलाल
सेंध लगी
दरो-दीवार गीले
न भीतर कुछ रहा
न बाहर ही बचा ।
पत्थरों की होली
बच्चों ने खेली
रक्षक मरवाए
जवान गँवाए
दिलों के किवाड़
चाकू से गुदवाए
नासमझ बयार
अब किससे हो गुहार ?
कंपन है धरा में
अर्श भी सलेटी हुआ
विषाक्त हुए दरिया
उगाएँ जहरीली फसल
‘कुकर नाग,”वेरी नाग ‘
‘अनंत नाग”त्राल’
दिन में मरते
रातों में बिसूरते
गर्दिश में दिन कटते ।
वादी सिसक रही
कौन, ढाँढस बंधाए
कौन, पेट की आग बुझाए
कौन, जन-जन को चेताए
रक्ताभ-झील को
फिर पाकीज़ा बनाए !!
वीणा विज ‘उदित’
15-6-15
Nb…..names of places under inverted caumas.