मोहब्बत

मोहब्बत 

तेरे प्यार के फाहे की उडीक करते
जख़्मों को हथेलियों से छिपाया
रिसते जख्म तो कभी भरे ही नहीं
हां तूं शदाई जरूर बन गया -।
तमन्नाओं से भरा यह समंदर
डर है कहीं सुनामी ना ले आए
चिराग की लौ डगमगाने पर
सुरमई बदलियां छा जाती हैं-।
लगी रही यादों का आशियाना बनाने में
दीवारें टटोलती रही छत बनी ही नहीं
चाहतें साहिल पर सर पटकती रहीं
समंदर ने खामोशी ओढ़ ली।
ताउम्र रूह चाहत का दम भरती रही
अब थकी उम्र की ढलान ढूंढे उसे
जिस के कदमों की आहट ने
फिज़ाओं में घोला था लाल रंग -!
कभी जीतना चाहा ही नहीं तुमसे
मैंने हार कर मोहब्बत की है
उम्रों को लांघ ग़र मिली तुमसे
धुंधले अक़्स में सिर्फ़ तेरी मोहब्बत होगी।।

डा.वीणा विज’उदित’

 

 

 

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