मलय बसंती

मलय बसंती 

खोले कोटर के द्वार कोयल लगी कूकने

फटी शिशिर की शान, बसंत लगी खिलने

महकी फगुनाई, पंख फैलाए विहगों ने

बगिया में मचाई गुनगुनाहट भंवरों ने !

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छाया हर्षोल्लास चहुं ओर, मोर लगे नाचने

गदराई पीली सरसों  लगी खेत में मुस्काने

ढोल मंजीरे बजाएं बरुआ, फगवा लगे गाने

जमघट पीपल तले चौपाल लगी गरमाने !

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गलियां बोल उठीं,  बच्चों की भगदड़ सुनें

चढ़ सहेलियां मुंडेर पर,  लगी खिलखिलाने

जामा उतरा शीत का ,नन्हे लगे थिरकने

खुल गईं बंद खिड़कयां,  द्वार लगे बतियाने।

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रंग बिखेर इंद्रधनुषी, प्रकृति लगी सजने

नीर भरने चली पनघट पर पनिहारने

गीतों की मधुर स्वर लहरी लगी गूंजने

शीतल मलय बसंती लगी झूले झूलने।।

वीणा विज’उदित’

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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