बर्फानी बाबा की दुर्लभ यात्रा
शिव शंकर ,भोले-भन्डारी,कैलाशपति, विश्वनाथ ब्रम्हाण्ड के कण-कण में व्याप्त इस जगत को जागृत करने हेतु विभिन्न स्थानों पर भिन्न- भिन्न रूपों में पूजे जाते हैं|उन सब में सर्वोपरि कश्मीर में स्थित अमरनाथ धाम है |उत्त्त्तर भारत में कश्मीर की बर्फीली पहाड़ियों में श्री अमरनाथ बर्फानी शिवलिंग के रूप में प्रगट होते हैं |शिव भक्तों
की सारी उम्र की पूजा – आराधना श्री अमरनाथ जी के दर्शन होने से ही पूर्ण मानी जाती है | और यह दर्शन रक्षा-पूर्णिमा के दिन करना परम सौभाग्य माना जाता है |
शास्त्रों में लिखे अनुसार एक बार माँ भगवती पार्वती ने शिव भोले से अमर-कथा सुनने का आग्रह किया, वे भी शिवभोले की तरह अमरत्व पाना चाहती थीं |तत्स्वरूप शिवजी उनको कथा सुनाने एकांत व शांत हिमालय की ओर
ले गए |कथा सुनाने से पूर्व उन्होंने अपने ऊपर धारण किए चन्द्रमा, गंगा ,शेषनाग व अपने वाहन बैल को वहीं राह में विश्राम करने को छोड़ दिया |
सर्वप्रथम बैल को छोड़ा–वह स्थान बैलगाम कालांतर में पहलगाम बन गया |
उसके पश्चात चंद्रमा–वह स्थान चंदनवाड़ी कहलाया |
शेषनाग को जिस झील मे छोड़ा –वह शेषनाग झील कहलाई|
एवम गंगाजी को पंचतरणी का नाम मिला |
तत्पश्चात भोले भंडारी ने एक भीष्मकाय पर्वत के आँचल में स्थित एक गुफा में पार्वती को अमर-कथा का श्रवण कराया | कथा सुनते- सुनते पार्वतीजी की आँख लग गई, किन्तु हामी भरने की आवाज़ आती रहने से शिवजी ने पूरी कथा सुना दी |किवदन्ती है कि वहीं पास बैठा एक कबूतरों का जोड़ा कथा को सुन कर ‘हूँ, हूँ’ करता रहा और वह अमर हो गया | आज भी दर्शनार्थ आए भक्तगण उन्हें देख पाते हैं |(इस बात की सच्चाई पता नहीं)
प्रति वर्ष गुरु पूर्णिमा से जम्मू एवं कश्मीर की सरकार पहाड़ों का बर्फीला रास्ता साफ करवा के तीर्थ यात्रियों के लिए खोल देती है |गुरु पूर्णिमा से लेकर रक्षा-बंधन की पूर्णिमा तक हजारों(अब लाखों) श्रद्धालु भक्तजन तुषारलिंग के दर्शानार्थ अमरनाथ गुफा में दर्शन करने हेतु पहुँचते हैं |
यात्रा प्रारम्भ—–
रेल ,बस, टैक्सी व कार से आने वाले यात्री जम्मू तवी पहुँचते हैं| यहाँ रजिस्टरेशन करवा के वे अपने -अपने वाहन से बम-बम भोले के जयकारे लगाते हुए अगली सुबह कारवाँ के साथ मंज़िल की ओर चल पड़ते हैं| राह में स्वयं सेवी संस्थाओं के लगाए लंगर उनकी भूख व प्यास मिटाते रहते हैं |जम्मू से सुबह चलकर यह कारवाँ रात को पहलगाम पहुँच जाता है | पहलगाम से एक कि.मी. नीचे ही ‘ नुनवन’ में यात्री बेस कैम्प पर
पहला पड़ाव होता है| यहाँ सुरक्षा बलों द्वारा जाँच-पड़ताल के पश्चात कैम्प में लगे तम्बुओं में यात्रियों के ठहरने की अच्छी व्यवस्था होती है| कैम्प के भीतर ही छोटा सा बाज़ार भी होता है, जहाँ आवश्यकता की प्रत्येक वस्तु जैसे ;बरसाती, छडी, कंबल, गरम कपड़े,मोजे, जूते, दवाई इत्यादि सब मिलते हैं | यहाँ देश के विभिन्न स्थलों से जैसे दिल्ली, आगरा, मेरठ, लख्नऊ, अंबाला, सिरसा, जलंधर, जम्मू, बुडलाडा मंडी आदि से स्वयं सेवी संस्थाएं
देसी घी के लंगर लगाती हैं और बहुत आदर -सत्कार से यात्रियों को भोजन कराती हैं |हर पड़ाव पर डाक्टरों की
पूरी व्यवस्था होती है व दवाइयाँ फ्री मिलती हैं |
अगली सुबह मौसम ठीक होने पर सुबह पाँच बजे यात्रियों को बढने दिया जाता है | यात्री जन पैदल, खच्चर पर या सूमो टैक्सी में बैठकर चंदन वाड़ी की ओर प्रस्थान करते है| जो १६ कि. मी. के पासले पर है | चंदनवाड़ी में बर्फ के पुल को लांघकर यात्री पिस्सू घाटी की सीधी चढ़ाई चढते हैं जो शेषनाग नदी के किनारे चलती है | १२ कि. मी. का लम्बा नदी का किनारा शेषनाग झील पर जाकर समाप्त होता है | यही तो नदी का उदगम स्थल है | (यही नदी पहलगाम से नीचे जाकर झेलम दरिया में मिल जाती है)चारों ओर बर्फ के श्वेत धौलाधार पर्वत ,ऊपर बादलों के शरारती खेल व नीचे मध्य में गहरे फिरोज़ी रंग की झील! मानो, चाँदी की अंगूठी में फिरोज़े का नग जड़ा हो | बहुत ही मन- लुभावना, मनोरम स्थल है |अनुपम सौन्दर्यमय !!!!
जनश्रुति है कि भाग्यशाली भक्तों को इस झील में शेषनाग जी के साक्षात दर्शन हुए हैं, जबकि कोई साक्षात प्रमाण नही हैं| फिर भी कई साधु झील किनारे इस आस में कई दिनों तक धूनी रमाए बैठे रहते हैं |
इस पड़ाव पर भी ठहरने व खाने- पीने की उचित व्यवस्था है |