पैमाने
वक़्त के अजब हैं
पैमाने
लम्हों की अलग हैं
गुज़ारिशें !
ज़िंदगी ने वक़्त
ही कहाँ दिया
बामुसलसल
बढ़ रहीं हैं ख़्वाहिशें !
रेतीले ढूह की मानिंद
सपनों के बिखर जाने की
आवाज़ नहीं
भीतर तक हिला देने वाली
सर्द़ लकीर
जिस्म के आर-पार
चुभोती है तश्वीशें !
कैसे रिश्तों को समेटें
अपने ही अक्स से
डरते हुए , बेबस,
अधूरी ख़्वाहिशों के ढेर पर
मुँह छिपाते हुए
टूट चुके लोग
क्यूंकि
मुश्किल होती हैं नुमाइशें ।।
*
अर्थ:-पैमाने- नाप ,तश्वीशें-चिंताएँ,
बामुसलसल-लगातार,
मानिंद- तरह
वीणा विज ‘उदित’