नज़्म -अनकहा रह गया
अनकहा रह गया
बहुत कुछ था
कहने सुनने को
अल्फ़ाज़ लबों तक
आकर ठहर गए
खुश्क लब
थरथराकर खुले रह गए
अफ़साने
सीने के भीतर
कसमसाने लगे
आँखों ने चाहा
कुछ बयां करना
इशारों से चाहा समझाना
लबों की बेबसी देख
पथरा के रह गयीं
सब अनकहा रह गया
हमेशा की तरह………
वीणा विज ‘उदित’