नव वर्ष विहान तुम्हारा अभिनंदन !
नव वर्ष विहान तुम्हारा अभिनंदन
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स्वर्णिम किरणों का दिव्य उजास लिए
जन-जन मानस पर छा जाओ
हे भानु, रश्मिरथी, शक्ति-पुंज
नव वर्ष विहान तुम्हारा अभिनंदन !
समय के वृहद-ग्रंथ का खुला पृष्ठ
व्यथा-उल्लास मिश्रण झेल हुआ पूर्ण
नेह की आशाएँ ले पलटेगा नव-पृष्ठ
नव दिवस प्रथम भोर तुम्हारा वंदन !
नैनों की वीथी में शुष्क रह गई
स्वप्न की पौध फिर हो अँकुरित
शब्द रिक्त रहे मध्य से डगमग
नव-ग्रंथ-पृष्ठ बाँच करें गहन चिंतन !
सत्य की उत्कट खोज का झंझावत
मानस-मन ग्यान को करे आँदोलित
अग्यान-तिमिर हटे,हो भाल उज्ज्वल
नव-अभिषेक करें केसर चंदन !
नव वर्ष विहान तुम्हारा अभिनंदन !!
वीणा विज ‘उदित’