धरा पे लिख दें हवा से कह.दें
एक ही जननी के उदर में पनपे
एक ही रक्त धमनियों में दौड़े
नहीं है प्राणतत्व संबंधों के तन में
संबंधों की आग से उसमें तपिश दें
धरा पे लिख दें हवा से कह दें
संबंधों के फूलों से सुगन्ध न लें ।।
एक हीआँचल से जीवन -रस पाएं
कारुण्य भरे क्रंदन सुन माँ रँभाए
गलबैंया डाल दिन-रात संग बिताए
एक ही थाली के चट्टे-बट्टे एक कहाऐं
धरा पे लिख दें हवा से कह दें
उधड़े रिश्तों की तुरपाई को माँ आए।।
रक्त में प्रवेश कर प्रत्येक शिरा में
विचित्र झनझनाहट उत्पन्न करें
रिश्तों की कैसी यह स्निग्ध धाराएं
अन्तरतर में क्षरित हो गल जाएँ
धरा पे लिख दें हवा से कह दें
मांस में धँसे नाख़ून ये नाम संग रहें ।।
वीणा विज उदित
30 जनवरी 2015
Lousiana