दरीचों से झाँकती धूप
अर्थ:-
तबूला रासा-खाली स्लेट ( Latin Phrase)
हिन्दी में “मासूम मन:स्थिति ”
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दरीचों से झाँकती धूप
मन के दरीचों पर जब यादों की
चाँदनी बिखरती है, तब
एहसास की आँखों में
इक रेशमी सोच निखरती है…
सोच…!
जो ख़्वाहिशों का विस्तृत फैलाव है
बीते हुए लम्हों का सुलगता अलगाव है
रोशनी की नदी है,दरीचों से झाँकती ये धूप !
आसां कब हुआ गले तक इसमें डूबना
डूबने देती नहीं इसमें,ज़िंदगी की तल्खियाँ !
घरौंदे बनते हैं आँसुओं के
नरम,मुलायम मिट्टी को रौंद, कूट
‘आवा’ में पका बनाते ईंटें मजबूत
आँधी,तूफां,ज़िंदगी की आंच उसे
पिघला न सके रह गए स्तब्ध
शायद यही है उसका प्रारब्ध !
फिर भी”तबूला रासा”जीवन लिए
चाहते आनेवाला कल उसपे उकारने
जो दिखता नहीं उसी को टेरने
वीर बहूटी सी मद्धम चाल चलने
बढ़ने,फूंक कर कदमों को मापने !
उजियारे संग जब घिरते अँधियारे
कोनों से झाँकती धूप पाँव पखारने
आगुंतक मलयी-बसंती पदचाप चुनने
अधखुले मन के सपनों को बुनने
द्वार से है झाँकती पुरवाई के
आलिंगन से तृप्त कलिका
घूंघट की ओट से तकती मधुप कतारें
उल्लास बढ़कर थाम लेता है दामन
उसी गिरफ्त में बँधना है ज़िंदगी
यही है ज़िंदगी का सतरंगी रूप
कितनी खुशनुमा लगती है
मन के दरीचों से झाँकती धूप !!
वीणा विज
February 15th, 2019 at 2:34 pm
बहुत पसन्द आयेी