जीवन का सार (कविता)

जीवन का सार
मनचली करवटें जब लेते समंदर
प्यार का एहसास देते छींटे मुंह पर।
मांगते ठौर जज़्बात मचल कर
अग्नि की लपटों को उठता देख कर।
रेत का जब उठता है बवंडर
लिपटती धरा मानो गलबैंया डालकर।
तन सिहरता बारिश में भीग कर
मन मुस्काता मिठास पाकर।
खुली छत पर आसमां की चादर
ओढ़ लेती आलिंगन में कस कर।
बदन के रोएं- रोएं से निकल कर
टंक जाते तारे आसमां के सीने पर।
कदम दिशाएं ढूंढते बाहर निकल कर
वायु वेग ले चलता संग बहा कर।
वरेण्य सौंपती प्रकृति कर्म विचार
पंचतत्वों से बंधा,यही जीवन का सार।।
वीणा विज’उदित’
5/5/22

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