छुट-पुट अफसाने एपिसोड ३

  1. छुट-पुट अफसाने –एपिसोड ३

जब भी अतीत की खिड़कियां खोलने लगती हूं तो वहां छिपे अफसाने ऊंचे-ऊंचे रोशनदानों से बाहर भागते से लगते हैं। उन्हें लपक कर पकड़ने का यत्न करती हूं तो कुछ कड़ियां खुलकर सामने बिखर जाती हैं। उन्हीं बिखरी कड़ियों को जोड़-जोड़ कर यह अफसाना लिख रही हूं…
मैंने बताया था पिछले एपीसोड में कि पाबो ( मम्मी की नानी) ने अपनी बेटी की ज़िंदगी की सलामती के वास्ते उसे भगतराम की तीसरी बीवी बनाया था। किन्तु होनी का लिखा कहां टल सकता है। बच्चों को लेकर मम्मी की मां मायके यानि कि गुजरात गुजरांवाला गई हुई थीं। वहां उनके कान में तीव्र पीड़ा होने पर किसी पड़ोसन के कहने पर तेल में लाल मिर्च जला कर वो तेल कानों में डलवाया  । उस तेल से उनके दोनों कान के पर्दे फट गए । उसका जहर भीतर ऐसा फैला कि वो पाबो के सामने ही चल बसीं ! भगतराम  का दिल बुरी तरह टूट गया था । उन्होंने थानेदार की नौकरी से इस्तीफा दे दिया। और बच्चों की देखभाल स्वयं करने लगे, क्योंकि कमला (हमारी मां)केवल डेढ़ साल की थी तब। साथ ही वे समाज-सेवा मेंं लग गए। उन्होंने एक छत के नीचे आर्यसमाज, मंदिर और गुरुद्वारा बनवाया । गुरुद्वारे के ग्रंथी की बीवी ने बच्चों के लालन-पालन में पूरा सहयोग दिया।इसी कारण हमारी मां को हवन मंत्रों के साथ-साथ जपुजी साहब का पाठ भी प्रतिदिन करने की आदत थी ।
एक दिन झेलम से खबर आई कि इन्दर (I.S.Johar) बहुत बीमार है। बच्चों को लेकर भगतराम जी अपने लख्ते जिगर को मिलने गए। लेकिन वो अपने बेटे को एक बार छाती से लगाकर प्यार नहीं कर सके। क्योंकि वो अपने वचन से बंधे जो थे। अब वो जौहर साब के दामाद थे केवल । हमारी मां बताती थीं कि उनके इस दर्द को बयां करना मुश्किल है। ये दर्द वहीं समझ सकते हैं, जिन्होंने अपनी औलाद किसी को गोद दी हो, और जग-ज़ाहिर की मनाही हो ।बम्बई में मम्मी ने जब इंदर भाई से पूछा कि आप कॉमेडी में ही क्यों interested हो? और साथ में यह बात सुनाई  तो (I.S.Johar) comedy king भी गमगीन हो गए थे। बोले कि दुनिया में बहुत ग़म हैं, तभी तो मैं लोगों को हंसाना चाहता हूं, सो कॉमेडी फिल्में बनाता हूं। 1971 में I.S.Johar को Best Comedian का Filmfare Award मिला था ।
हां, मदनमोहन जी संगीतकार कैसे बने ? इसके पीछे भी इसी परिवार से संबंधित एक घटना है। हमारी मां के बड़े भाई धर्मवीर जो मदनमोहन के जिगरी दोस्त थे, 13-14 वर्ष की उम्र में , उनकी मौत के हादसे ने उन्हें इतना सदमा दिया कि वे उसकी याद में अकेले बैठे गीत गाते रहते थे । दर्द और सोज़ भरे नग़में, फिर सारा झुकाव ही संगीत की ओर हो गया था जिनमें अथाह वेदना और मनस्ताप था ।उनके संगीत से सजा लता मंगेश्कर जी का गीत ,
“माई री मैं कासे कहूं पीर अपने जिया की…माई री…”दर्द भरा अमर-गीत है।
हां तो भगतराम ,जो उस जमाने में भी अपने बच्चों को शिक्षा के आभूषण देना चाहते थे । उन्होंने बेटी (हमारी मां )को चकवाल के होस्टल में डाल दिया हुआ  था। बड़ा बेटा रोशन बनारस यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग कर के घर आ गया था। मदन उनके पास ही पढ़ रहा था। उन्होंने “स्त्री रोगता ” पुस्तक लिखी थी । फिर एक और पुस्तक लिखी, जिस का नाम याद नहीं आ रहा। ( मुझे लगता है लेखन के बीज शायद वहीं से मुझ में फलीभूत हुए हैं ) सन् १९३७ की बात है। जब बेटी आठवीं पढ़ कर घर आई तो वे मृत्यु शैय्या पर थे ,और उनकी ज़िंदगी का सफर समाप्त हो गया था ।
अगले एपिसोड में कहीं और ….
वीणा विज’उदित
15November’19

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