करिश्मे..

समवेत गान पक्षियों का
भोर की वेला में
उद्गाताओं का वेद पाठ
प्रतीत होता नित्य …
होते संचालित स्वयं
साँझ – विहान
कैसे करूं बखान
होकर दत्तचित्त …
हिरण कौंचलें भर खोजे
स्वयं में छिपी कस्तूरी
मोर नाचे रोए
करें करिश्मे अचंभित …
दीमक बनाए बाम्बी
जाल बुने मकड़ी चतुर
उल्टे नीड़ बुने बया
फिर छोड़े हो तटस्थ …
शैशव और मातृत्व
जन जीव की धाति
मध्वक फूलों से ले पराग
बनाए मधु,कोष में रह स्थित …
इंसां भी आतुर आँखों में
बुनता नित नए स्वप्न
यायावरी जिजीविषा लिए
राग-द्वेष,तृषा- प्रेम सहित …
वैदेह जीवन पाया जो
हो श्रेय मार्ग भोग चयन
तृषित हो जाए तृप्त
पाए निर्वाण बने अरिहन्त …!

वीणा विज’उदित’

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