कराह रही दीवाली
स्वदेसी माटी के दीए मे तेल जले
विदेशी मोमबत्ती कुछ पल जल बुझ जाए
देस की माटी की याद हिय दर्द जगाए
ऋग भर आए, झर-झर नीर बहाए
दीए बिन दीपावली मनाऊं कैसे—
अपने लक्ष्मी-गणेश रिझाऊं कैसे–
रोशनी के पुंज से घर-द्वार सजाए
बिन धूप,दीप,तुलसी आरती गाऊं कैसे
बेशकीमती कालीनों से फर्श ढ़ंके
‘श्री’स्वागत में रंगोली सजाऊं कैसे
दीए बिन दीपावली मनाऊं कैसे–
अतीत के झरोखों से झांक विचलित करें
लड़ू, बर्फी,ढेरों व्यंजनों से भरे थाल
अनचीन्हे तेलों से विदेशी जार भरे
अंधकार की देहरी पर घृत-दीप जलाऊं कैसे
दीए बिन दीपावली मनाऊं कैसे–
मां-बापू, भाई-बहनों की याद सताए
फुलझडी, चकरी, पटाखे मैं पाऊं कैसे
स्वदेस की दीपावली क्रिसमस ने पछाडी
कराह रही दीवाली मेरी परदेस में ऍसे
दीए बिन दीपावली मनाऊं कैसे..||
वीणा विज उदित
आलोकित हों सब के घर-द्वार
शुभ हों दीवाली के वन्दनवार !
“शुभ दीपावली”