एक गरिमा भरो गीत में
गीतिका मासूम कुम्हलाई हुई
गीत संपुटित विहँस रहा
नीरवता चहुँ ओर छाई हुई
काव्य उदासित सहम रहा ।
दर्द भरी अंत:करण की गहराई
मानव-तन दर्द से बिलख रहा
असंतोष चिंता व्याप्त हर थाई
काव्य तन से उजास मर रहा।
उठो एक गरिमा भरो गीत में
तृप्ति हो धरा से अंकुरित बीज में
चहकता-फुदकता ज्यूं जीवित नीड़
काव्य संगीत में ऊर्जा भर रहा ।
उन्मुक्त खिलखिलाती धूप हो
न मलिन मुख न हंसी विद्रूप हो
आत्म-विश्वास सोच का मूल हो
काव्य गीत गरिमामय बन रहा ।।
वीणा विज उदित
30 सितम्बर 15