आगत विहान
विगत वर्ष ने ली अँगड़ाई
आगत विहान नव-वर्ष ले आई।
अतीत की विक्षत भुलाकर
नव प्रभात नई उम्मीदें है लाई।
भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ें
जन-जन नेअन्तरआत्मा जगाई।
प्रमुदित है मन स्वयं ही विचार
अनुशासित जीवन की अलख जगाई।
आईने में धुंधलाए थे जो अक्स
गर्दिश से उबार नव उमंग जगाई।
असहिष्णुता को समीर संग बहा
निर्मल गंगा संग सहिष्णुता लाई।
आशाओं के दीप जले मुंडेर पर
दिव्य आत्मा रूप ले धरा पर आई।
कण-कण में शुभ-कर्मण की बेलें
नव गति, नव लय भारत में छाई।।
वीणा विज”उदित”