आधे सच (लघु कथा )
नाम नहीं लूँगी उस अस्पताल का। फर्क नहीं पड़ता वो कोई भी अस्पताल हो,क्योंकि सब के सब आज की तारीख मे बुचरखाने बन चुके हैं । हमारे पड़ोसी शुगर के मरीज थे। उनके डाक्टर ने किसी नई दवाई की उन पर अजमाईश की , जो उन्हें सूट नहीं करी । तबियत इतनी बिगड़ी कि आधी रात को ही एमरजैंसी मे ले जाना पड़ गया । वहाँ पहुँचते ही ग्लूकोज़ और औक्सीजन लगा दिए गये । डाक्टर वहाँ नहीं थे अलबत्ता स्टाफ नर्स ने रूटीन इलाज किया । किसी को सिफारिशी फोन करने पर, किसी तरह डाक्टर को सुबह होने से पहले बुलाया गया । ICU मे मरीज के पास किसी को भी जाने की मनाही थी । बाहर सारा परिवार रो रहा था और मरीज के लिए प्रार्थना कर रहा था । नर्स आती थी और एक पर्ची पर दवाओं की लिस्ट पकड़ा जाती थी ।उनका बेटा लिस्ट लेकर भागता था अस्पताल के भीतर वाले मैडिकल स्टोर पर । सारा दिन यही कुछ चलता रहा । ईश्वर का जाप और मन्नतें माँगी जा रही थीं । रात दोबारा दस्तक दे रही थी कि तभी हमारे एक common friend वहीँ की एक डाक्टर के साथ ICU मे भीतर गए । मैं भी वहाँ से उठकर उनके साथ चल दी । उस डा.ने भीतर जा हमारे मरीज की नब्ज़ देखते ही कहा,”अरे, यह बौडी पड़ी-पड़ी ठंडी हो चुकी है। सारी formalities कर के बाहर दो इनके रिश्तेदारों को ।”इतना कह वह आगे बढ़ गई। यह सुन, मैं दुखी हृदय से खबर देने बाहर भागी तो देखा कि एक नर्स के हाथों से पर्ची लेकर उनका बेटा इंजैक्शंस और दवाइयां लेने भीतर मैडिकल स्टोर की ओर जा रहा है। मैंने आगे बढ़कर उसके हाथ से पर्ची ले ली, और कहा,” यह दवाइयां भीतर नहीं जाएंगी । बेटा, आपके पापा तो बहुत देर से हैं ही नहीं । ये दवाइयां किस के लिए लेने जा रहे हो ?” वह हैरत से मुझे देख रहा था ,फिर मेरे कंधे पर सिर रख कर फफक पड़ा । एक ओर बच्चों के सिर से बाप का साया उठ रहा था और दूसरी ओर अस्पताल लूट रहा था। एक आधे सच का और पर्दाफाश हुआ कि यही दवाइयां फिर से उसी मैडिकल स्टोर पर बेच दी जाती थीं ।
अहसास, जज़्बात और इंसानियत का कहीं कोई नामों -निशां नहीं था । मरीज आया है तो उसके घर वालों को जितना लूट सकते हो लूट लो । बहुत विरक्ती हुई कि किस बुचरखाने मे फँस गए हैं हम । और हैरत तो तब हुई जब उनके बेटे ने दवाइयों की लिस्ट डा.को दिखा कर पूछा,”डा. साब, आप ने यह दवाइयां मुर्दे को देनी थीं क्या?” डाक्टर की अंतर्आत्मा पर यह करारा प्रहार था लेकिन वह ढीट खड़ा सुन रहा था । क्या मालूम इस प्रहार का असर अगले मरीज तक भी रहा होगा कि नहीं……
वीणा विज उदित