अनुमोदन
иконографияज्यूं -ज्यूं इम्तिहान खत्म हो रहे थे,, कैली का मन अजीब ऊहापोह से घिर रहा था |अब आगे क्या है? ग्रेजुएशन तक बचपन व जवानी का एक अहम हिस्सा सीधी लकीर पर चल रहा होता है |कब बचपन ने मुँह मोड़ा ,कब जवानी ने आकर गलबैयाँ डाल लीं, पता ही नहीं चलता है |लेकिन अब सम्मुख निर्लक्ष्य दिशाहीनता थी |जीवन के पिटारे में भाग्य ने उसके हिस्से में कौन सी राह चुन रखी है , किसे पता –? वो राह उसे सीधे मंज़िल की ओर ले जाएगी या फिर गिरते-पड़ते ठोकरें खाकर वो अपनी मंज़िल पा सकेगी ? विड़म्बना तो यह है कि अभी तो ‘मंज़िल’ ही तय नहीं है | वैसे जवानी में तो मन ढेरों कल्पनाओं के जाल बुनता रहता है | उसकी उड़ान की हदें जमाने से परे होती हैं |सो वह भी हवाओं में क्लैडियोस्कोपी जैसी रंग-बिरंगी तस्वीरें बनाती रहती |कभी वो ऊपर तो आसमां नीचे होता, तो कभी वो चाँद-तारों को मुटठी में बंद कर लेती थी |नदी की रवानगी में उसे सारा संसार संगीत की धुन पर थिरकता लगता था |जीवन की वास्तविकता से अभी वो अन्जान थी |उसके अचेतन मन में सिमटी पड़ी पुरानी यादें चेतना में आने के लिए संघर्ष कर रही थीं |उन्हीं से प्रेरित हो वो अपना लक्ष्य तलाश रही थी |
होस्टल में उसने बहुत मस्ती की थी |ममी-पापा की मौत एक हवाई- हादसे में होने के कारण उसके दादा-दादी ने उसे माँ-बाप की कमी नहीं महसूस होने दी थी| व बहुत लाड़-प्यार से उसे पाला था|हाँ इकलौते बेटे-बहू की आकस्मिक मृत्यु ने उन्हें तोड़ कर रख दिया था|दादू तो इस ग़म से ऍसे टूटे कि उनका नीचे का आधा शरीर लकवाग्रस्त हो गया था और वे व्हीलचेयर के होकर रह गए थे|कल्याणी उर्फ कैली को होस्टल भेजकर वे दोनों भी कम्यूनिटी सैंटर रहने चले आए थे |वहाँ रहनेवाले सारे संगी-साथी दुःखी व प्रताड़ित आत्माएँ थे, जो एक-दूसरे का दर्दॉ-ग़म साँझा करते थे |ये दोनों भी घर में अकेले रहक्रर पल-पल अपने दुःखों में जलने की अपेक्षा यहाँ सब के साथ प्रेम से जीते हुए ग़मों को भुलाए हुए थे |उनकी आशा की किरण थी उनकी पोती,”कैली”|
कैली ने दादू को फोन पर कहा था कि वो इम्तिहान के पश्चात एक हफ्ते के लिए अपनी दोस्तों के साथ “लाँस वेगास “घूमने जा रही है, तत्पश्चात उनके पास आएगी |वे दोनों उसकी खुशी में खुश थे |उनके पास पैसा बहुत था , वे उसे पैसे की कमी नहीं होने देते थे |कैली को आख्ररी क्षण न जाने क्या हुआ कि उसने अपना ट्रिप कैंसल कर दिया |अपने दादू-दादी के प्रति उसका कर्तव्य उसके अंतस को पुकार-पुकार कर सचेत कर रहा था कि अब उसे कर्तव्य-परायणता निभानी है |वक्त आ गया है कि वो उनको साथ लेकर अपने घर वापिस जाए और उनकी ज़िंदगी की बची-खुची घड़ियों को अपने स्नेह और दुलार से सींचे |यह संकल्प उसका मनोबल बन गया और फलस्वरूप घूमने – मस्ती करने की अपेक्षा उसने अपने बुजुर्गों के पास जाना उचित समझा |लाँस वेगस की बजाय वह सैनफ्रान्सिस्को से ट्रेन लेकर “ड़बलिन” (वहीं का एक हिस्सा) के लिए निकल पड़ी उन्हें सर्प्राईज़ देने |ऊ हूँ, उनको लिवाने और उनके सान्निध्य में एक नया संसार बसाने के ख़्वाब संजोए……
ड़बलिन के कम्यूनिटी -सैंटर पहुँचकर उसने रिसैप्शन पर साईन किए और दूर से ही छिपकर परिस्थिती का जायज़ा लेने का प्रयत्न करने लगी |ढेरों बुजुर्गों के मध्य अपने दादू-दादी को जोर-जोर से हँसते देखकर उसका मन बल्लियों उछल पड़ा |यह सब देख उसके मन में व्याप्त उदासी व चिन्ता की परछाइयाँ धुँधली हो चलीं और चेहरे पर मीठी मुस्कान ने आधिपत्य जमा लिया |दादी जैसी एक स्त्री किसी मैग़ज़िन से शायद चुटकुले पढकर सुना रही थी , जिन्हें सुनकर दादू व अन्य खिलखिलाकर हँस पड़े थे |कि तभी एक बैल बजी |इससे पहले कि कैली अचानक उपस्थित हो उन्हें चौंका दे, वे सब सैंटर के गार्ड़न की ओर चल पड़े थे |दादी ने एक सिद्धहस्त की तरह व्हीलचेयर का हैंड़ल बाहर की ओर घुमा दिया | उनकी साथिन ने (जो अमेरिकन थी )स्लोप से नीचे उतारने में उनकी मदद की |जात-पात से परे वो सब वहाँ एक ही कैटेगरी के थे |जो थी ‘बुजुर्ग’!..एक- दूसरे के हमदर्द |इससे कैली भाव-विह्वल हो उठी |उसके आने के मकसद को जैसे सार्थकता मिल गई थी |
उदासी और खुशी के मिले-जुले भावों से नम हो गई अपनी आँखों को उसने मुस्कुराहट की चादर ओढा दी |और झट से आगे बढकर दादू की व्हीलचेयर को थाम लिया |कैली को इस तरह अप्रत्याशित रूप से अपने सामने पा, दादू हर्षातिरेक से चीख ही पड़े,”ओह माय गाँड़ ! माई बेबी इज़ हिअर! आई कैन नाँट बिलीव इट”! दादी ने तो आगे बढकर उसे बाहों में भर लिया |उन दोनों की आँखों से सुखद अविश्वास और अति प्रसन्नता की मिली-जुली प्रतिक्रिया स्वरूप आँसू बह चले थे |इस भावपूर्ण दृश्य को देख अन्य बुजुर्गों के मातृत्व के बीज भी अंकुरित हो उठे, फलस्वरूप उनकी आँखें भी सजल हो गईं थीं| कुछ ने तो तालियाँ बजाकर खुशी का साथ दिया |वहाँ किसी एक की खुशी में सब खुश थे और किसी एक के ग़म में सब ग़मगीन | इतनी आत्मीयता , इतना अपनत्व पा कल्याणी (कैली) को एहसास हुआ कि उसने दोस्तों के साथ न जाकर अपने प्रियजनों से मिलने का फैंसला लेकर अक्लमंदी की | उसने महसूस किया कि जीवन में किसी को पल दो पल की खुशी देने से कितना आत्मसंतोष मिलता है , फिर यहाँ तो पूरा वातावरण ही सौहार्दमय हो उठा था | दैनिक-प्रार्थना के पश्चात विसर्जन हुआ |सब भीतर की ओर चल पड़े थे | साफ़-सुथरे कमरे में पहुँचकर दादी ने फ्रिज से जूस और केक निकालकर कैली के सामने टेबल पर रखे ही थे कि चार और हाथ चार प्लेटें लिए आ गए थे | टेबल भरती देखकर कैली ने सर ऊपर उठाया तो देखा उसकी दादी जैसी वहाँ चार और दादियाँ स्नेह उड़ेलती खड़ी थीं | पेपरों के विषय में पूछने के बाद कैली ने उनके लिए लाये उपहार शाँल व मफलर उन्हें भेंट किये |दोनो खुशी से भरकर अपने उपहार चूम रहे थे और कल्याणी को कृतज्ञतापूर्ण दृष्टि से देख रहे थे |
साँझ घिर रही थी और कैली को घबराहट हो रही थी कि वो अपने मन की बात उन दोनो से कैसे कहे ?कोई भी गैस्ट वहाँ केवल दो दिन ही ठहर सकता था |समय कम था, और उन्हें यहाँ से घर ले जाने के लिए कनविन्स करना था|इसी कश्मोकश में घिरी वो सोफे से उठकर दादी के बिस्तर पर चली आई |दादी ने उसे प्यार से साथ लिटा लिया |पूछा,’क्या बात है ,कुछ कहना है क्या कैली ?’
“हाँ ,दादी! मेरी ग्रेजुएशन हो गई है |अब मैं जाँब करूंगी|मैं चाहती हूँ कि आप दोनो अब घर वापिस चलकर मेरे साथ ही रहें | अब से मैं आप दोनो की देखभाल करूंगी |”
दादू भी पास लेटे सब सुन रहे थे |वे दोनो चुप थे |कैली के प्यार पर उन्हें पूर्ण विश्वास था , लेकिन…
उधर कैली सोच रही थी कि यह दोनो ही अब उसके बच्चे हैं|जिनकी देखभाल उसीने करनी है |यही उसका कर्तव्य है |
शुक्र है सही समय पर उसने सही फैंसला ले लिया है |
आधी रात को दादू की तबियत अचानक बहुत खराब हो गई|उनकी बाई बाजू में बेहद दर्द और सीने में घबराहट हो रही थी |मलने से कोई आराम नहीं आ रहा था |कैली बेहद घबरा गई थी , उसने इससे पहले कभी उन्हें इतना बदहवास होते नहीं देखा था लेकिन दादी ने झट दीवार पर लगी बैल बजा दी |पाँच मिनिटों में ही सैंटर का ड़ाक्टर आ गया |इससे पहले आसपड़ौस के कमरों से उनके साथी भी आ पहुँचे थे |ड़क्टर ने बी.पी लिया फिर इंजैक्शन देकर उन्हें सुला दिया |कहा चिन्ता की कोई बात नहीं है |शायद किसी परेशानी की वजह से हायपरटैंशन हो गई थी |वो सो गए थे इंजैक्शन से ,लेकिन कैली उनकी परेशानी समझ रही थी अच्छे से |न जाने फिर कब उसकी आँख लगी |सुबह देर से उठी तो देखती क्या है कि दादू के दो साथी दादू के दैनिक- कार्य करवा रहे हैं |तब तक दादी तैयार हो उन्हें उन दोनो की मदद से व्हीलचेयर में बिठाकर ,कैली को नाश्ता करने को कहकर हाँल में प्रार्थना-सभा
के लिए चल दीं |इसके बाद वे सब लायब्रेरी में स्वध्याय करते थे |फिर हाँल में टी.वी देखते व कुछ कैरम-बोर्ड़ या चैस खेलते थे |मर्द लोग राजनीति पर चर्चा-प्रतिचर्चा करते थे |कुछ ताश खेल रहे होते थे |कैली ने देखा ,बहुत रोचक था इन सब का रहन-सहन| उसे लगा बाहर की दुनिया , रिश्ते-नाते भूलकर ये सब स्वंय में ही मस्त हैं |क्या वह इन दोनो को इतनी खुशहाल ज़िंदगी दे पाएगी ..?वह स्वंय से ही प्रश्न कर रही थी |अजीब कश्मोकश थी उसके सम्मुख !!दिन भर की दिनचर्या के पश्चात् फिर रात घिर आई थी | वातावरण बोझिल हो चला था |दादू-दादी दोनो चुप्पी साधे हुए थे |सैंटर के सदस्यों से वे दोनो इस कदर जुड़े हुए लग रहे थे कि इन्हें उनसे अलग करना मानो पेड़ को उसकी जड़ों से उखाड़कर पुनः
रोपने का यत्न करना |ड़िनर के पश्चात दादू-दादी ने उसे पास बैठाया व समझाने लगे कि अब उन दोनो का यहाँ से जाकर कहीं और रहना नामुमकिन है |यहाँ जो निःस्वार्थ -प्रेम उन्हें मिला है , वही हर कष्ट की दवा है |वे कैली की भावनाओं की कद्र करते हैं लेकिन रिश्ते भावनात्मक स्तर पर नहीं ,अपितु बैद्धिक स्तर पर जीने चाहिए |अभी कल्याणी के जीवन की पहली सीढी है, मंज़िल तो न जाने कहाँ है| अभी वो अपना भविष्य सँवारे…अपने वर्त्तमान को सँभाले | हमें यहीं रहने दे –हमारे अपनों के बीच | कल्याणी निरुत्तर थी |यथार्थ की आँधी ने उसके सपनों के सारे तार छितरा दिए थे |फिर भी सब कुछ समझते हुए दादू-दादी के विचारों का उसने सहर्ष अनुमोदन किया व अपनी भावनाओं को संयत करते हुए ,अपना फैंसला बदल दादी से लिपटकर शांति से सो गई |
वीणा विज ‘उदित’
२६अगस्त..’११