सृजनकार का वन्दन कर ले।

प्रस्तुत है एक रचना…..

सृजनकार का वंदन कर ले..

ग्रहों ,उपग्रहों की सृष्टि रच के
अंतरिक्ष में कोई दिशा न बनाई
गूढ शिल्प का अध्ययन कर ले
सृजनकार का वंदन कर ले ।

*      *      *      *      *
नटी प्रकृति में नवरंग बिखेर के
हरी वसुंधरा छत नील गगन दिया
लहरों से नवगीत सिमर ले
सृजनकार का वंदन कर ले ।

*       *       *       *      *
ग्रंथो, काव्यों की सृजना कर के
ऋषि, मुनियों ने उपकार किया
उऋण हो रच गीत रुपहले
सृजनकार का वंदन कर ले ।

*      *      *       *       *
जीव जन्तु ,प्राणी जल थल में
कल कल झरने ,उपवन महके
दुखद सुखद भावों को समझ ले
सृजनकार का वंदन कर ले ।

*      *      *      *       *
मानवमन की संरचना कर के
अनुभूति.अभिव्यक्ति जगाई
अब जग तजने का उपक्रम कर ले
सृजनकार का वंदन कर ले । ।

वीणा विज उदित

Leave a Reply