रक्तबीज दानव (कहानी)

“रक्तबीज दानव”

“हैलो”, हैलोओओ! रजत ।”घबराई आवाज..
“जी, पापा आप घबरा क्यों रहे हैं? क्या बात है?”लेकिन पापा की आवाज़ की टोन पर स्वयं उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी थीं। पापा का फोन हो या मम्मी का, वह बिना देर किए उठाता था क्योंकि वह उन दोनों को अकेला इंडिया में छोड़ कर सिडनी (आस्ट्रेलिया) आ गया था।
“बेटा , तुम्हारी मम्मी 3 दिन से ठीक नहीं है खांस भी रही है और उसको 103 डिग्री बुखार भी है। मेरी हालत भी ठीक नहीं है । मुझे भी लगातार 100 डिग्री बुखार चल रहा है । मुझे शक है कि कहीं हम कोरोना वायरस के शिकंजे में तो नहीं कसे गए!”
इतना सुनते ही रजत का सिर घूम गया। वह उनसे सुबह शाम पूछता था कि आप दोनों ठीक है ना? इतनी दूर , दूसरे देश में बैठकर वह और कर भी क्या सकता था! उसका कर्तव्य बोध उसे धिक्कार रहा था। उसने पापा को तसल्ली दी और कहा,” मैं विशाल, अरुण अपने दोस्तों से बात करता हूं।”
उसी समय उसने चंडीगढ़ में अपने दोस्त विशाल को हालात से अवगत कराया और उससे प्रार्थना की कि उनका ध्यान रखे। बचपन से ही चार दोस्तों का उनका अच्छा खासा ग्रुप था चंडीगढ़ में । उसके दोस्त भी डॉक्टर से बात करने अस्पताल पहुंच गए थे।
उसने स्वयं भी पीजीआई अस्पताल में फोन करके उन्हें अपने घर का पता दिया और उन्हें एंबुलेंस भेजने के लिए कहा । पुनः पापा को फोन पर तसल्ली दी और कहा कि आप अस्पताल जाने की तैयारी करें । उसका मन और मस्तिष्क विपत्ति की बेला में एक साथ भाग रहे थे— इस आपदा से लड़ने के लिए और इसे हराने के लिए ! साथ ही साथ में अपने इंडिया आने की टिकट की तैयारी में भी लग गया था। सिडनी से इंडिया के लिए काफी एयरलाइंस थीं । उसने एड़ी- चोटी का जोर लगाया । उसे किसी में भी सीट नहीं मिल रही थी। उधर फोन पर वह लगातार कभी पापा से और कभी अपने दोस्तों से बातें कर रहा था। अजीब कशमकश चल रही थी। सीट ना मिलने के कारण बार-बार उसकी आंखें भर आ रही थीं।
‌‌ रजत के पापा डॉ खन्ना , डॉक्टर होते हुए भी कुछ समझ नहीं पा रहे थे। इस भयावह बीमारी की संभावना से ही वे भयभीत हो गए थे। इसमें मन की अवस्था का स्थिर होना और सकारात्मक होना आवश्यक होता है लेकिन हर दिन न्यूज़ और लोगों के अनुभव सुनकर, इसके दुष्परिणाम देखते हुए वे क्षण-प्रतिक्षण भीतर से टूट रहे थे। कोई भी न्यूज़ चैनल लगाओ वहां पर कोरोना से होने वाली मौतों के आंकड़े दिखाए जारहे थे, जिससे नकारात्मकता अनजाने में ही घर कर लेती है। चारों और बेईमानी और धूर्त लोग इस आपातकालीन स्थिति का फायदा उठाते भी दिखाते हैं।
पूरा विश्व ही इस आपदा से ग्रसित दिखाया जा रहा है। लॉकडाउन लगाकर लोगों को घरों के भीतर सुरक्षित रखा जा रहा है। सोशल डिस्टेंसिंग और मांस्क का उपयोग आवश्यक कर दिया गया है। वे दोनों तो हाथ भी सारा दिन धोते रहते हैं। फिर यह नामुराद उनके घर कैसे आ सकता है? वह यही सोच कर परेशान थे, इसके होने का विश्वास नहीं कर पा रहे थे।

रिटायर्ड लोगों का एक ही काम होता है न्यूज़ चैनल बदलते रहना और राजनैतिक और सामाजिक स्थितियों का जायजा लेना। कई राजनीतिक प्रपंच भी होते दिखते रहते हैं— बैठे-बिठाए लाखों मजदूर अपने-अपने गांव जाने को कैसे मुश्किलें झेलते हुए अपने ठिकानों से बाहर की ओर निकल पड़े थे— मानो मधुमक्खियां अपने छत्ते से बाहर की ओर निकल पड़ी हों!
इन भयभीत मजदूरों की मानसिक स्थिति को समझते हुए अपने घर बैठा हर व्यक्ति व्यथित हो उठा था। खन्ना साहब का सारा ध्यान तो उन्हीं में रहता था। कि कहीं यह गरीब लोग कोरोनावायरस की महामारी से संक्रमित ना हो जाएं! अपने विषय में तो वे ऐसा कभी सोच ही नहीं सकते थे। कामवाली बाई के ना आने से सुधा को सारा काम करना पड़ रहा था तो उन्होंने सोचा थकावट हो गई होगी, एकाध दिन आराम करके ठीक हो जाएगी।
अपनी पत्नी सुधा को बारंबार खांसी का दौरा पड़ने से उनके विचारों में व्यवधान पड़ रहा था, वह उससे बात भी नहीं कर पा रहे थे। उन्हें याद नहीं कि कभी जिंदगी में वह बीमार पड़ी हो! आज उसकी असहाय अवस्था देखकर वे घबरा गए थे। उसने दोनों हाथों से अपनी छाती को दबाया हुआ था। वह उसे आवाज देकर कह रहे थे कि उठो सुधा कुछ खा पी लो। और स्वयं भी बुखार में होते हुए वह घर को संभाल रहे थे।
घर बंद करते समय घर का हर कोना सजीव होकर उनसे पूछ रहा था कि जल्दी लोटोगे ना ? और वह घर से बातें कर रहे थे। पश्चिम की ओर छुपता जाता सूरज भी आंख चुरा रहा था, कहीं जाने वाले को आखरी सलाम तो नहीं दे रहा था? डॉ खन्ना के “हार्ट” में चार वर्ष पूर्व तीन स्टंट डल चुके थे। इससे उन्हें तो अपने आशियाने से जाना कुछ -कुछ अंतिम यात्रा पर प्रस्थान करना लग रहा था । वह बेसुध पड़ी सुधा के पास बैठ कर उसे सहलाने लगे थे। जो आंखें बंद किए हुए बीच- बीच में बुरी तरह बेदम होकर खांस रही थी।
वे अल्मारियां बंद कर रहे थे और विदाई की बेला में उनकी आंखें बरस कर अपने निशान फर्श पर छोड़ रही थीं। डॉक्टर साहब ने घर में रखा कैश कुछ अपने पास रखा और बाकी सब सुधा के पर्स में डाल कर उसे पकड़ कर उठाया और बताया कि चलो, एंबुलेंस आ रही है। दोनों खड़े हुए तो सुधा उनके गले लग गई और उस घड़ी-” वक्त” भी रो रहा था। उन दोनों की रुलाई फूट रही थी। वे डरे हुए कस के एक- दूसरे के साथ कभी ना बिछड़ने के लिए चिपके हुए थे। मानो, अंतिम सफर की तैयारी थी अब…!

अभी पिछले हफ्ते ही तो उनकी शादी की 50वीं सालगिरह उन्होंने धूमधाम से यहां के नामी होटल में मनाई थी! ‌ सुधा, आज के जमाने की स्टाइलिश दुल्हन बनी थी। जयमाला और सगाई की रस्म भी की गई थी । अभी तो फोटोग्राफर की एल्बम भी नहीं आई है । आजकल सैल फोन से ढेरों फोटोस तो खींची ही गई थीं। बहुत सुंदर तस्वीरें आईं थीं। वह भी इतने चाव से सब रस्में निभा रहे थे —उनकी सोच 50 वर्ष पूर्व के माहौल में पहुंच गई थी। उन दिनों में शादी सीधे-साधे ढंग से होती थी लेकिन आज पार्टी में तकरीबन पच्चीस कपल्स ,उनके दोस्त और कुछ दूर के रिश्तेदार आए थे ।
असल में सुधा की दोनों बहनों ने उसे कहा था कि वह 50 वीं सालगिरह अवश्य धूमधाम से मनाए क्योंकि परिवार में इतनी किस्मत वाली कोई विवाहित जोड़ी नहीं है कि यह दिन देख सकती । एक बहन छोटी विधवा हो गई थी और दूसरी इतनी रईस नहीं थी कि खुशकिस्मती से उसका ऐसा समय आ भी जाए तो वह धूमधाम से कोई फंक्शन कर सके! सुधा ने इसीलिए दुल्हन जैसे कीमती गहने और नए कपड़े भी बनवाए थे। वंदनवार भी सजा, हंसी- मजाक ,नाच – गाना, खाना सभी कुछ हुआ । ना मालूम ऐसी नजर लगी किसी की या कहीं से उन्हें पता ही नहीं चला… किसने उन दोनों को सबसे अमूल्य उपहार दे दिया था ….”कोरोनावायरस!”
तीन दिनों से खांसी और बुखार के कारण सुधा खाना नहीं बना पा रही थी उसकी हिम्मत जवाब दे गई थी तो उसकी पड़ोसन सहेली “कांता” उसके डाइनिंग टेबल पर उन दोनों का खाना रख जाती थी और ऊंची आवाज में हाल-चाल पूछ कर दवाई भी मंगवा कर रख जाती थी! मुसीबत के समय पड़ोसन और उसका परिवार ही सारे रिश्ते… मां , भाई- भाभी , बहन, बेटी के निभा रहे थे। लेकिन इस नामुराद बीमारी में चाहते हुए भी मन मार कर सबको दूर रहना पड़ता है! कैसी मजबूरी मैं डाल दिया है इस मुसीबत ने !!
तभी एंबुलेंस की टीं-टीं-टीं सायरन की आवाज दूर से आते सुनाई दी। सब पड़ोसी दूर से उन्हें हाथ जोड़ रहे थे और सब के मुंह उतरे हुए थे। कोई सहानुभूति दिखाने नहीं आ पा रहा था। क्योंकि सब को डर था कि मौत का फरिश्ता अपने जबड़े फैलाएं कोरोना के मरीज को निगलने की तैयारी करके आता है, तो हो सकता है इन्हें कोरोना ही हुआ हो। कोई खतरा मोल लेने को तैयार नहीं था।
जिन सीनियर सिटीजन्स के बच्चे बाहर हैं और वह अकेले रहते हैं उन उम्रदराज लोगों का अपने पड़ोसियों से प्यार हो जाता है और मुसीबत में वही अपनत्व दिखाते हैं। लेकिन इस महा घातक और जानलेवा बीमारी ने यह परिभाषाएं भी बदल के रख दी हैं।

वहीं दूसरी ओर एंबुलेंस में बैठकर चार आदमी अपनी ड्रेस में छिपे से उनको स्ट्रेचर पर ले जा रहे थे । वे पूरी तरह से ढंके हुए थे। ज़रा सी चूक – ! तो वे भी मौत के मुंह में जा सकते थे । धन्य हैं , यह सेवक! ये भी अपनी माता के लाल हैं। डॉक्टर साहब को लगा – यही उनके रक्षक हैं ! इस भीषण आपदा की बेला में इस महामारी से संघर्ष करते हुए सारी दुनिया ही आज अभूतपूर्व कठिनाई से जूझ रही है । ऐसे में मनोबल और उत्साह आसानी से टूट सकता है ! लेकिन इन लोगों का सेवा भाव देखकर हौंसला मिलता है और नकारात्मकता दूर होती है। मन ही मन में दोनों ईश्वर के समक्ष नतमस्तक हो प्रार्थना कर रहे थे कि हे सर्व शक्तिमान ! मुश्किल में उन्हें उनका ही सहारा रह गया है, रक्षा करें । स्वामी विवेकानंद ने भी कहा है —“प्रेयर्स कैन मूव द माउंटेंस।”
अस्पताल के नियमों के अनुसार दोनों को अलग-अलग कमरे में रखा गया। सुधा तीसरे फ्लोर पर थी , तो डॉक्टर साहब दूसरे फ्लोर पर । भाग्य ने दोनों के साथ आंख- मिचौंली खेलनी आरंभ कर दी थी लेकिन भाग्य की अदृश्य भाषा कोई कैसे जान सकता है? वार्ड ब्वाय से वे सुधा के विषय में जानकारी चाह रहे थे लेकिन उसे कुछ ज्ञात नहीं था। वे फोन भी कर रहे थे लेकिन सुधा उठा नहीं रही थी क्योंकि सुधा पर कोरोना का कहर टूटा हुआ था । उसको बुखार के कारण बात करने का होश ही नहीं था । वहां कोई डॉक्टर उसे व्यक्तिगत रूप से देखने नहीं पहुंचा था । हां, नर्स से फोन पर रिपोर्ट पूछ कर डॉक्टर दवाई लिखवा देते थे।
रजत के पापा- यानी डॉक्टर साहब पूजा पाठ में विश्वास करते थे । ” देवी भागवत पुराण” में राक्षसों की सेना को मारने के लिए मां भगवती शेर की सवारी करके एक हुंकार करती है तो उस फूंक से सब मर जाते हैं । चाहे वह शुंभ निशुंभ शक्तिशाली राक्षस थे या राक्षस रक्तबीज! – – -जिसका रक्त जहां भी गिरता था वहां और राक्षस सेना पैदा हो जाती थी। यह वायरस भी जहां जाता है सब को मार रहा है। क्या भागवत पुराण में सांकेतिक स्वरूप समझाएं गए हैं? लगता है प्रकृति रुष्ट हो गई है। वे लेटे हुए जाप करते रहते थे, वे अस्पताल में क्वारन्टीन थे। ऑस्ट्रेलिया से रजत का फोन आता , तो वे उसे तसल्ली देते रहते कि सब ठीक हो जाएगा।
रजत मम्मी को भी फोन लगाया था तो नर्स जवाब देती थी कि वह अभी खांस -खांस के थक गई है बात नहीं कर सकती हैं, या सोई हैं। अस्पताल में चौथे दिन नर्स ने इसी नंबर पर फोन करके कहा कि आपकी मम्मी नहीं रहीं। चीत्कार कर उठा रजत। उसने नर्स से कहा कि वह पापा को न बताए। वह आ रहा है। रजत के दोस्त और चाहने वाले तथा सुधा की बहनें पहुंच गई थीं, लेकिन उनको पार्थिव शरीर नहीं दिया गया , उसे मोर्चरी में रख दिया गया। बेटे के पहुंचने के इंतज़ार में ! ‌उधर डॉक्टर साहब सोच रहे थे कि सुधा भी क्वारंटीन है। अस्पताल वालों ने रजत के दोस्तों से कहा कि हम 5 दिन से ऊपर पार्थिव शरीर को मौर्चुरी में नहीं रखेंगे और संस्कार कर देंगे।
बहुत जद्दोजहद के बाद रजत को इंडिया की फ्लाइट में एक सीट मिली तदोपरांत कहां आसान था आना ? करोना टेस्ट सिडनी एयरपोर्ट और दिल्ली एयरपोर्ट पर भी करवा कर रजत चौथी रात को इंडिया पहुंच गया था और वह सुबह चंडीगढ़ अस्पताल पहुंचा। जहां उसे एक बैग में रखी हुई उसकी सुंदर सी ममता की मूरत मां , थोड़ी सी ज़िप खोल कर दिखाई गई। उसे लगा, उसकी मां चिर निद्रा में मग्न मीठे सपने देख रही है। कोरोना के कारण वह मां को मुखाग्नि भी नहीं दे सका। सारे संस्कार, रीति-रिवाज ताक पर रखे रह गए थे। अस्पताल वाले दाह संस्कार करने
के लिए कोरोना मरीजों को गैस चेंबर में जला रहे थे। कोई मंत्रोच्चारण नहीं किया किसी ने।
कहां गए वह मंदिरों के पुजारी? इंसान जन्मता है मृत्यु शाश्वत सत्य है और अटल है उसने मृत्यु का ग्रास बनना ही है। रजत के दिमाग में सारे विचार उथल-पुथल मचा रहे थे। वह अपनो के कंधों पर , अपनी भोली- भाली मां के लिए विलाप कर रहा था। हार्ट पेशेंट पापा को जब हकीकत से दो-चार कराया गया , तो वे बुरी तरह टूट गए और बार-बार धरती पर लोट रहे थे। रजत उन्हें भी संभाल रहा था। कोरोना साक्षात यमराज और “काल” बनकर उनके परिवार पर टूट पड़ा था। घर-घर में इस त्रासदी से पीड़ित लोगों में हाहाकार मच गया है घर टूट गए और बर्बाद हो गए हैं , और होते जा रहे हैं।
आज डॉक्टर खन्ना भी घर के दरवाजे के भीतर सुधा के बिना जाते हुए फफक रहे थे और घर के हर कोने के सवाल का जवाब देने में अपने को बेबस पा रहे थे—!

वीणा विज’उदित’
25/5/21

 

 

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