मधुर संग

खुशनुमा है मौसम
सबा है खा़मोश
मदमस्त हवाओं की
छुअन दे सिहरन
सुनाए किसी के
कदमों की आहट !
बेक़रारी थी जिनके लिए
हर पल, हर दम
मेरे हमदम हो रहे
वो अब आ कर
बदन में फिर
क्यों कसमसाहट !
मेरे ज़हन के
आसमां पर
खिला था चाँद
अधूरा सा
मन के दरीचों पर
चाँदनी की अकुलाहट!
उनींदी आँखों से
देखे थे
जिनके ख़्वाब
खुली आँखों से
देख, दूर होगी
वो भरमाहट !
मन में मंथन
रुकता नहीं
जिनके ख़्यालों का
होगा अंतरंग
मधुर संग
ज़हन में है
मीठी गुदगुदाहट !!

वीणा विज ‘उदित’

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