फागुन की मीठी धूप

अधखिली धूप में अँगड़ाई ले
पैर पसारें विपुल धूप आँगन में
पौष, माघ जाड़े से थे बेहाल
फागुन की मीठी धूप पधारी आज ।
मेथी- मूली,आलू-गोभी के परौंठे
उन पर रख ताजे-मक्खन के पेड़े
खाएँ अचार की फांक लगाकर
फागुन की मीठी धूप में बैठ आज ।
उम्रों की गवाह बूढ़ी नानी-दादी
बदन पर ओढ़े रंगीली फुलकारी
बैठ अँगना घर भर से बतियातीं
फागुनी धूप में खिलखिलातीं आज ।
खुले गगन की हदें नापते नव पंछी
मादक गंध बिखेरती नई कपोलें फूटी
खेतों ने रंगबिरंगे फूलों की चादर ओढ़ी
फागुन की धूप खिली ज्यूं नवोढ़ी आज ।
लेता अँगड़ाई शीत से ठिठुरा बदन
हट गया कोहरे की चादर का कहर
अल्साई निंदिया ने परे फेंके लिहाफ
फागुनी धूप ने दिया निजात आज ।

वीणा विज ‘उदित’

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