प्रलोभन की मार

प्रलोभन की मार

 

प्रलोभन की मार

 

“नौसेना के पनडुब्बी कार्यक्रम की सूचनाएं लीक,  दो पूर्व अफसरों समेत पांच गिरफ्तार!”

दैनिक अखबार में यह खबर पढ़ते ही अनुपम के पापा जोर-जोर से देशद्रोहियों के विरुद्ध अपने उद्गार आक्रोश में व्यक्त करने लगे , जिन्हें सुनकर आभा और अनुपम दोनों पापा के करीब आकर खड़े हो गए। वर्तमान परिपेक्ष्य में पड़ोसी देश की सक्रियता स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रही थी। लेकिन जब सेना के कमांडर या सैनिक इस क्रिया कलाप का हिस्सा बनते हैं तो आम जनता का विश्वास डगमगा जाता है। अनुपम के पापा आम जनता के एक अंश ही तो हैं। वे अखबारों मैं देश भक्तों का कॉलम अवश्य पढ़ते हैं। बच्चों को ज्ञात है कि पापा तन मन से सच्चे देश सेवक और देशभक्त हैं। अनुपम इस वास्तविकता को भली-भांति जानता है क्योंकि स्कूल की पढ़ाई के दिनों में उसके पापा अनुशासन का पाठ सर्वदा पढ़ाते रहे और उसके किसी भी अमान्य आचरण पर रोका टोकी करते रहते थे। पापा हमेशा कहते रहते हैं ,

“जैसा बीज बोएंगे वैसी ही फसल होगी । वो बात और है कि कभी-कभार कीट-आगमन या मौसम की मार से फसल नष्ट हो जाती है! कभी-कभी नैसर्गिक शक्तियां अपना रूप अनिष्ट करके भी जता देती हैं। वैसे ही संस्कृति बचाने के लिए संस्कारों का रोपण किया जाना चाहिए । यदि पत्थर पर बीज गिर जाए तो बीज को पनपने से वह  रोक देता है। उसी प्रकार मनुष्य का मन इतना चंचल होता है कि भले आचरण की गतिविधियां उसे रुकावट लगती हैं।”

   अनुपम यह सब जानते – विचारते हुए भी कई बार भटक जाता है। उसे घर कैदखाना लगता है और पापा उसके जेलर। मैट्रिक पास करके उसने डिफेंस की परीक्षाओं का पता किया और तैयारी करके परीक्षाएं समय-समय पर देता रहा। आखिर उसका चुनाव हो गया। पापा बेहद प्रसन्न थे क्योंकि भारतीय फौज के लिए उनके मन में बहुत आदर था वह उसकी मां से बोले,

   ” तुम्हारा बेटा फोन में भर्ती हो गया है। अरे भाई फ्रंट पर लड़ेगा नहीं लेकिन भीतर से देश की सेवा तो करेगा फिर आगे चलकर ना जाने कौन सा पद बाद में मिल जाए। हम तो आज गंगा नहा गए हैं । लाओ हलवा बनाओ और हमारा मुंह मीठा कराओ।” मां भी गर्व से मुस्कुरा दीं।

   इधर अनुपम भी अपने पर नाज़ कर रहा था। अपनी प्लेसमेंट पर वह प्रसन्न था और सुनहरे ख्वाब बुनने लग गया था। कैंट में उसकी पोस्टिंग हो गई थी। स्टाफ के साथ में रहने पर उसे अपना काम और कमांडिंग ऑफिसर के बंगले पर अर्दली की ड्यूटी मिल गई थी। बंगले पर साहब और मेम साहब का घरेलू हाथ बंटाने से वह उनके काफी करीब हो गया था। मेम साहब तो सुबह हल्का-फुल्का रसोई का काम निपटा कर सारा घर उसके भरोसे छोड़कर अपनी ताश पार्टी , क्लब मीटिंग , लेडीस वेलफेयर कमेटी आदि की मीटिंग पर चली जाती थीं। अनुपम की मौज लग गई थी वह अब ऐश करने लग गया था।  हां मेम साहब और साहब के वापिस आने पर वह साहब की यूनिफार्म तैयार करता था। उनके बैचेस , बक्कल ,बटन वगैरह ब्रासो से चमकाता और उनके बूट पॉलिश करता था। आर्मी कैंटीन से घर का सामान भी वही लाता और घर में सब संभालता था।

   एक दिन दोपहर को लैंडलाइन फोन की घंटी दो बार बजी, पर कोई नहीं बोला। फिर थोड़ी देर बाद दो बार घंटी बजी फिर भी कोई नहीं बोला। उसके बाद शांत हो गई। अनुपम हैरान और परेशान रहा और धीरे धीरे इस बात को भूल गया। फिर कुछ दिन बीत गए अचानक एक दिन आठ -दस घंटियां बजी तो उसने फोन उठाया । उधर से कोई मधुर सा नारी-स्वर बोला,

   ” तुम सेल फोन क्यों नहीं रखते हो ? मैं तुम्हारे लिए सेलफोन भेज रही हूं ।”और फोन कट गया। अनुपम को बुरा लगा। किसी को क्या मतलब है मैं फोन रखूं या ना रखूं। फालतू को फोन करके बोलते हैं। लेकिन उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब थोड़ी ही देर में दरवाजे पर उसके नाम का एक पैकेट पड़ा हुआ था। उसने खोला तो उसमें एम आई का फोन था। पैकेट में एक स्लिप पर नंबर भी लिखा हुआ था तभी सेल फोन की घंटी बजी और एक नारी कंठ ने कहा,

   ” मैं तुम्हारी दोस्त हूं ! तुम पर दिल आ गया है। क्या करूं तुमसे बात करने को दिल चाहता है। तुम से मिलूंगी लेकिन अभी नहीं, सब्र रखना।”

   तेइस वर्ष की उम्र के जवान अनुपम का तो एक-एक अंग खुशी के मारे फड़कने लगा। इस उम्र में जवां विचारों और सपनों का संसार उमंगों के इन्द्रधनुषी रंगों में सज गया था। उसने फोन छुपा कर रख लिया ।  उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि अपनी खुशकिस्मती किसी से भी साझा करे। अगले दिन फिर उसी समय फोन आया जब मेमसाहब घर से बाहर निकलीं और यह सिलसिला आगे चालू हो गया।  उस औरत ने अनुपम का अकाउंट खुलवा कर उसमें कुछ हजार रुपए डलवा दिए। अब तो अनुपम अपने लिए ब्रांडेड कपड़े लेने लग गया। घर जाते हुए इस बार छुट्टियों में वह आभा के लिए भी ब्रांडेड कपड़े ले गया था।

       वापसी में उसे होटल में ठहराया गया और उसके लिए एक लड़की पेश करी गई। उसने पहली बार जवानी का आनंद लिया , जिससे वह मदहोश हो गया था। इसी मदहोशी में उस औरत ने उससे कहा कि वह उसे हवाले से लाखों रुपया भेजेगी किंतु बदले में वह उसे कैंट की अहम जानकारियां देता रहे। जो उसके सिवाय किसी को पता ना चलें।  कैंट के प्रवेश द्वार से लेकर प्रस्थान द्वार तक की हर गतिविधि , सैनिक बल,  हथियारों की किस्में और उनकी तस्वीरें भी , कौन से अफसर नए तैनात हुए , कौन से कहां गए और किस पोस्टिंग पर गए ? ‌– – –इस तरह की विशेष जानकारी देता रहे।

       अनुपम पैसे के प्रलोभन में  ऐसा फंसा कि उसे अपना देशद्रोह का आचरण समझ नहीं आ रहा था । वह तो जवान लड़की और पैसे के नशे में सब जानकारियां उस औरत को बताए जा रहा था— जिसका नाम था परवीन खान। उसने उसे बता दिया कि वह एक विदेशी गुप्तचर संस्था की महिला अधिकारी है, तभी वह उसे हवाला से लाखों की रकम भेज रही थी । अनुपम ने उससे मिलना चाहा क्योंकि वह अब समझ चुका था कि वह फंस गया है। इस पर परवीन खान ने कहा,

       ” इंशा अल्लाह वह उसे मिलेगी अवश्य लेकिन यहां  नहीं, वह उसे किसी दूसरे देश में बुलाएगी। वहीं मेल होगा।” यह सुनकर वह रोमांचित हो उठा कि वह दूसरे देश की सैर भी करेगा। मैडम परवीन खान ने उससे कैंट का ब्लूप्रिंट मंगवाया। अनुपम के बैरेक से उसका एक साथी विपुल कभी-कभी उसे अजीब नजरों से देखता था शायद उसे उस पर शक हो गया था। आज भी उसे वह बेहद खुश देख कर पूछ उठा कि क्या बात है वह बहुत खुश क्यों है? तो अनुपम ने कह दिया कि घर जा रहा है छुट्टी पर इसलिए खुश हैं। ब्लू प्रिंट की तैयारी की बात वह छिपा गया और वह छुट्टी पर चला गया, जहां शहर में उसने होटल में रुकना था और वहां उसे जवान लड़की भी मिल रही थी। खुशी के मारे वह सातवें आसमान पर उड़ रहा था। उस की चाल-ढाल में पैसा बोलता था । उसके पापा ने घर पहुंचने पर इस बावत पूछा भी लेकिन अनुपम ने बातें बना लीं।  झूठ पर झूठ बोल कर वह बच निकलता था।

       वापस आकर उसने कैंट का ब्लूप्रिंट जो तैयार किया था चुपके से वह निकाला, तो उसके साथी विपुल (जो पहले से चौकन्ना था), की उस पर नजर पड़ गई और उसने ड्यूटी ऑफिसर को चुपके से बुला भेजा! वह उन्हें पहले भी इसके विषय में सचेत कर चुका था । अनुपम आर्मी की जासूसी करने के अपराध में आखीर रंगे हाथों पकड़ लिया गया । उसके पास से कैंट का ब्लूप्रिंट निकला। बुरे कर्मों का नतीजा यह तो होना ही था। सीधा-साधा सैनिक पियक्कड़ भी बन गया था पैसे के प्रलोभन में फंसकर।

        शराब और शबाब की बारिश हो रही थी उस पर विदेशी एजेंटों के माध्यम से! अब कोर्ट मार्शल तो सेना के जवान पर होना ही था । वह देश की सुरक्षा का सौदा करके उसे बेच रहा था।  रोने और सिर धुनने से अब कुछ हासिल नहीं था।  हर बात से अंजान कमांडिंग ऑफिसर और मेम साब भी शक के घेरे में फंस गए थे । अनुपम के परिवार ने शर्म के मारे अपने को घर में बंद कर लिया था और पापा ने समाज की जलालत से बचने के लिए गले में फंदा लगाकर अपनी जान दे दी थी । उसने अपनी बहन का भविष्य भी मिट्टी में रौंद दिया था।  काश!  वह अंधकारमय भविष्य की ऐवज में उसके लिए ब्रांडेड कपड़े ना खरीदता और देशभक्त का बेटा अपने देश से गद्दारी कर के देशद्रोही न कहलाता।

        जेल के सीखचों में उसे एक खूनी के साथ रखा गया जिसने एक सेठ का खून किया था जो इतना जालिम था कि गरीबों को सताता था। जब इसने उसे पूछने पर बताया कि वह केंट की जानकारी दुश्मन देश की गुप्त एजेंसियों को दे रहा था। तो यह सुनकर उस खूनी का खून खौल उठा और उसने कहा,

        “भई , तुम तो बहुत ऊंची कोटि के खूनी हो। मैंने तो मजबूरों को सताने वाले एक जालिम का खून किया था लेकिन जिस देश के सैनिक बनकर तुम्हें उसका मान बढ़ाना चाहिए था तुमने तो उस देश का ही खून कर दिया। “

        अपने को “खूनी “संज्ञा से बुलाए जाने और धिक्कारे जाने पर वह आत्मग्लानि से विफर कर अपनी छाती में मुक्के मारने और सिर के बाल नोचने लगा। उसके समक्ष अपने देश भक्त पापा के व्याख्यान घूमने लगे। आंखों से अब पश्चाताप की गंगा जमुना बह रही थीं, जब सब कुछ लुट चुका था।

वीणा विज’उदित’

5/11/21

Leave a Reply