नृत्य में मस्त रे
नृत्य में मस्त रे
यह कर्ण भेदी नगाड़े
दिशाओं ने कैसे छेड़े
ग्रह उपग्रह, आकाशगंगे
संग लिए नक्षत्र घनेरे।
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सुखद शैल में संलग्न शिलाएँ
जागृत हो उठीं सुन गर्जन
कम्पित अंधकार गूँज हेरे
उत्सुक, आतुर लिए हिलोरे
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पूनम चन्द्र के ज्वार-भाटे
सागर की उतुंग लहरें
अचंभित ठगी रहीं निहार
चहुँ ओर कोलाहल घनेरे
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निशा-दामिनी छिटक रही
आँख-मिचौली खेल रही
पवन चंचल पग तेज धरे
मेघों के सुन ढोल-मंजीरे
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ढमा-ढम नाद कौतुक जगाए
अडिग धरणी कम्पित श्वास ले
छमा-छम बरखा ने छींटे बिखेरे
ब्रहमाणड ज्यूँ नृत्य में मस्त रे ।।
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वीणा विज’उदित’