निःशब्द आहट
निःशब्द आहट (कविता )
शैवालों से घिरा हृदय ऊहापोह में
नैराश्य के भँवर में डोल रहा
संवेदनाएं संघर्षरत उभरने को
अन्तर् -आंदोलित मथित छटपटाहट -।
आते हैं चले जाते हैं भाव-ज्वार
हालात नहीं कलम उठा करूँ अभिव्यक्त
कब मिला आसमां ज़मीं को मेरी
अव्यक्त रहने की बोझिल उकताहट -।
बो दिए हैं दरीचों में रिसते ख्वाब
पढ़ेगा कौन शब्द ,होकर आत्मसात
दरारों में छिपी व्यथा- गाथा ज़मीं की
विह्वल हो उठी लख बेचैन अकुलाहट -।
हर दीवार इक अक्स छाप देती
इक इबारत हर सूँ नज़र आती
शरद वरद हस्त उड़ेलता शब्द विन्यास
ज्यूं कमल में भ्रमर की उद्वेलित झटपटाहट-।
रह जातीं त्वरित भाव-व्यंजनाएँ अधूरी
मौलिक विचारों की निर्वात कविताएं नहीं पूरी
अन्तस की गहन अनुभूतियाँ हो मुखर
सुनतीं हृदय व्यथा कथा की निःशब्द आहट-।।
वीणा विज उदित